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डॉ. नरेंद्र सिंह कपानी: फाइबर ऑप्टिक्स के अनसुने नायक की कहानी

कभी सोचा है कि इंटरनेट, टेलीविजन, और आधुनिक संचार तकनीक किसके बलबूते इतनी तेज और प्रभावशाली बनी? इसके पीछे एक भारतीय वैज्ञानिक की गजब की कहानी छिपी है, जिनका नाम है डॉ. नरेंद्र सिंह कपानी

शुरूआती जीवन

बचपन में स्कूल के एक साइंस क्लास में जब उनके टीचर ने कहा कि “लाइट हमेशा सीधी चलती है,” तो छोटे नरेंद्र ने मासूमियत से पूछ लिया, “ऐसा क्यों?” लेकिन उनका सवाल सराहा जाने के बजाय उनका मजाक उड़ाया गया। टीचर ने चुनौती दी, जा, लाइट को बेंड करके दिखा।”
इस घटना ने युवा नरेंद्र को भीतर तक झकझोर दिया। उन्होंने ठान लिया कि वह साबित करेंगे कि लाइट को मोड़ा जा सकता है।

उच्च शिक्षा के लिए लन्दन जाना

डॉ. कपानी ने बीएससी की पढ़ाई आगरा यूनिवर्सिटी से पूरी की और फिर इंडियन ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज सर्विस (देहरादून) में कुछ समय काम किया। लेकिन उनका असली लक्ष्य लाइट के बेंडिंग नेचर पर रिसर्च करना था। इसके लिए उन्होंने इंग्लैंड की इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन में दाखिला लिया।

इसी कॉलेज में उनकी मुलाकात ब्रिटिश वैज्ञानिक हेरोल्ड हॉपकिंस से हुई। दोनों ने मिलकर ऑप्टिकल फाइबर पर काम शुरू किया।

फाइबर ऑप्टिक्स की खोज

डॉ. कपानी ने देखा कि इंग्लैंड में इस्तेमाल हो रहे मेडिकल उपकरण (जैसे एंडोस्कोप) कम रेजोल्यूशन और कठोर संरचना के कारण प्रभावी नहीं थे। उन्होंने टोटल इंटरनल रिफ्लेक्शन के सिद्धांत का उपयोग करके पतले और लचीले ग्लास फाइबर बनाए, जिनसे लाइट सिग्नल बिना कोई जानकारी खोए लंबी दूरी तय कर सकते थे।

क्रेडिट का संघर्ष

1952 में, कपानी और हॉपकिंस ने मिलकर “फाइबर ऑप्टिक्स” की खोज दुनिया के सामने रखी। लेकिन क्रेडिट को लेकर दोनों में विवाद हो गया। कपानी साहब अमेरिका में प्रोफेसर पद पर काम किया | इसी समय जापानी स्टूडेंट  चार्ल्स क्वेन ने लन्दन के इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन में दाखिला लिया और कपानी सर के रिसर्च पेपर्स को पढ़ा और फाइबर ऑप्टिक्स में अपनी रिसर्च करने के बाद अपनी रिसर्च पेपर्स पब्लिश किये | और फाइबर ऑप्टिक्स की खोज के लिए नोबेल प्राइज से नवाज़े गये |

डॉ. कपानी का योगदान और विरासत

हालांकि डॉ. कपानी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन उन्होंने कई पेटेंट हासिल किए और फाइबर ऑप्टिक्स तकनीक को विभिन्न क्षेत्रों में विकसित किया। 1960 के दशक में, उन्होंने अमेरिका में प्रोफेसर के रूप में काम किया और रिसर्च जारी रखी।

आज की दुनिया में, इंटरनेट, केबल टीवी, और चिकित्सा विज्ञान में ऑप्टिकल फाइबर का इस्तेमाल हर जगह होता है। डॉ. कपानी की मेहनत और समर्पण ने तकनीकी दुनिया को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

 

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