सोलोमन द्वीप के वानगुनु द्वीप पर पाया जाने वाला विकानु विशाल चूहा (Uromys vika) एक दुर्लभ और अद्भुत प्राणी है, जिसे पहली बार वैज्ञानिक रूप से साल 2017 में पहचाना गया। यह चूहा स्थानीय रूप से “विका” के नाम से जाना जाता है और यह केवल इसी द्वीप पर पाया जाता है। लंबे समय तक यह केवल एक नमूने तक ही सीमित था, लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने इसे उसके प्राकृतिक आवास में कैमरे में कैद किया है, जिससे इसके जीवन और संरक्षण से जुड़ी अहम जानकारियाँ सामने आई हैं।
खोज और विशेषताएँ
आकार और रूप:
विकानु विशाल चूहा आम चूहों की तुलना में काफी बड़ा होता है। इसकी लंबाई करीब 46 सेंटीमीटर (1.5 फीट) तक हो सकती है और वजन 500 ग्राम से 1 किलोग्राम तक होता है।
आवास:
यह प्राणी एक वृक्षवासी (arboreal) प्रजाति है, यानी यह पेड़ों पर रहता है। यह वानगुनु द्वीप के घने, निम्नभूमि वाले वर्षावनों में पाया जाता है।
आहार:
स्थानीय समुदायों और वैज्ञानिकों के अनुसार, यह चूहा कठोर खोल वाले नगाली नट्स और नारियल जैसे फलों को अपने मजबूत दांतों से चीरकर खाता है।
हालिया अवलोकन
सितंबर 2020 से अगस्त 2021 के बीच, मेलबर्न विश्वविद्यालय, सोलोमन द्वीप राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, और जैरा समुदाय के संयुक्त प्रयासों से यह दुर्लभ प्रजाति पहली बार कैमरा ट्रैप में देखी गई। वैज्ञानिकों ने कैमरों को तिल के तेल से आकर्षित किया और कुल 95 तस्वीरें चार अलग-अलग चूहों की ली गईं। ये अवलोकन Zaira Community Resource Management Area में किए गए।
संकट की स्थिति
IUCN स्थिति:
विकानु विशाल चूहा को “अत्यंत संकटग्रस्त” (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि यह केवल एक सीमित क्षेत्र में ही पाया जाता है और उसका आवास लगातार नष्ट हो रहा है।
मुख्य खतरे:
इस प्रजाति को सबसे बड़ा खतरा वाणिज्यिक लकड़ी कटाई (commercial logging) से है, जिससे इसका प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है। हालांकि, जैरा समुदाय सक्रिय रूप से शेष वन क्षेत्रों की रक्षा में जुटा हुआ है।
Uromys vika या विकानु विशाल चूहा न केवल जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह यह दर्शाता है कि दुनिया के कुछ सबसे अनजाने कोने भी अब भी ऐसे जीवों का घर हैं जिन्हें बचाया जा सकता है। यह खोज यह भी दर्शाती है कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी और वैज्ञानिक प्रयासों से दुर्लभ प्रजातियों की रक्षा की जा सकती है। वनगुनु द्वीप के जंगलों को बचाना ही इस विशेष प्रजाति को बचाने का एकमात्र रास्ता है।