कल्पना कीजिए, एक ऐसी गाड़ी जिसमें फ्यूल टैंक में पानी डलता है और एग्जॉस्ट से भी पानी ही बाहर निकलता है। न कोई कार्बन डाइऑक्साइड, न प्रदूषण, और फिर भी पेट्रोल या इलेक्ट्रिक इंजन जितनी पावर। यह किसी साइंस फिक्शन से कम नहीं लगता, लेकिन जापानी कंपनी टोयोटा ने इसे हकीकत में बदल दिया।
EV से कैसे बेहतर है यह ?
ईवी को पर्यावरण के लिए वरदान माना जाता है, लेकिन गहराई से देखने पर इनकी कई खामियां सामने आती हैं:
- इलेक्ट्रिसिटी की सोर्सिंग: ईवी को चार्ज करने वाली बिजली अक्सर कोयला, डीजल और नेचुरल गैस से आती है। इसका मतलब है कि ईवी भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण कर रही हैं।
- रेयर मेटल्स की समस्या: ईवी बैटरियों में लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे दुर्लभ धातुओं का उपयोग होता है। इन्हें निकालने और प्रोसेस करने में भारी मात्रा में फॉसिल फ्यूल जलता है।
- कार्बन फुटप्रिंट: एक इलेक्ट्रिक गाड़ी के शोरूम तक पहुंचने से पहले ही यह लगभग 1368 किग्रा कार्बन डाइऑक्साइड गैस रिलीज कर चुकी होती है।
हाइड्रोजन इंजन: एक बेहतर विकल्प
हाइड्रोजन को फ्यूल के रूप में इस्तेमाल करना एक शानदार विकल्प है। हाइड्रोजन मॉलिक्यूल छोटे होते हैं, जिससे इन्हें टाइटली पैक किया जा सकता है। हाइड्रोजन जलने पर तीन गुना ज्यादा ऊर्जा देता है और इसके एग्जॉस्ट से सिर्फ पानी निकलता है। लेकिन हाइड्रोजन इंजन के साथ कई चुनौतियां थीं:
इंफ्लेमेबल हाइड्रोजन: शुद्ध हाइड्रोजन बेहद ज्वलनशील होती है। अगर टैंक में लीकेज हो जाए, तो यह एक टिकिंग टाइम बम बन सकता है।
स्टोरेज की समस्या: हाइड्रोजन को सुरक्षित रूप से स्टोर करना बेहद कठिन है।
वॉटर इंजन का कांसेप्ट
टोयोटा ने हाइड्रोजन की इन समस्याओं का हल खोजने के लिए “वॉटर इंजन” का आइडिया पेश किया। पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन होते हैं, लेकिन ऑक्सीजन की वजह से यह एक्सप्लोजिव नहीं होता।
पानी को फ्यूल में कैसे बदला?
टोयोटा के फ्यूल स्टेशन्स ईवी चार्जिंग स्टेशन्स जैसे होते हैं। वहां पानी में इलेक्ट्रोलिसिस प्रोसेस के जरिए हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग किया जाता है।
अलग की गई हाइड्रोजन को तुरंत गाड़ी के टैंक में भरा जाता है।
शुरुआती वॉटर इंजनों की समस्याएं1980 के दशक में स्टैनली मेयर्स नामक एक अमेरिकी इन्वेंटर ने पानी पर चलने वाली गाड़ी बनाई। यह गाड़ी सिर्फ 4 लीटर पानी में 180 किमी तक चल सकती थी। लेकिन इसके डिज़ाइन में कई समस्याएं थीं:
मेटल फ्यूल टैंक का सड़ना: पानी में मौजूद ऑक्सीजन टैंक को सड़ा देती थी।
कैल्शियम ऑक्साइड का जमाव: पानी में कैल्शियम कार्बाइड घुलने पर कैल्शियम ऑक्साइड बनता था, जो टैंक को क्लॉग कर देता था।
एसिटिलीन की अनस्टेबिलिटी: यह गैस बेहद खतरनाक और ज़हरीली होती थी।
टोयोटा की क्रांतिकारी सोच
टोयोटा ने इन सभी समस्याओं को हल करने के लिए इनोवेटिव अप्रोच अपनाई। उन्होंने:
वॉटर रेजिस्टेंट कोटिंग: फ्यूल टैंक को अंदर से एक खास मटेरियल से कोट किया ताकि यह सड़े नहीं।
ऑन–द–स्पॉट हाइड्रोजन प्रोडक्शन: पानी से हाइड्रोजन तभी निकाली जाती है जब गाड़ी को जरूरत होती है। इससे हाइड्रोजन के स्टोरेज की समस्या खत्म हो गई।
जापान और टोयोटा: इनोवेशन के प्रतीक
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने साबित किया कि अपनी सीमित प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद, इनोवेशन और मेहनत के जरिए सफलता पाई जा सकती है।
टोयोटा की यह सोच आज भी दुनिया के लिए प्रेरणा है। अगर जापान जैसी छोटी जगह इतनी बड़ी क्रांति कर सकती है, तो हम भी अपने इनोवेशन से पर्यावरण और समाज के लिए बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
टोयोटा का वॉटर इंजन न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह दिखाता है कि सही सोच और तकनीक से किसी भी समस्या का समाधान संभव है।