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वैज्ञानिकों ने एक ऐसा बैक्टीरिया विकसित किया है जो जेनेटिक कोड के 7 हिस्से हटाकर भी जीवित है।

कल्पना कीजिए, अगर आपको बताया जाए कि पृथ्वी पर हर जीवन — इंसान, पेड़, मछली, फफूंद — एक ही जेनेटिक कोड पर आधारित है, तो? ये कोड तय करता है कि डीएनए में दर्ज जानकारी कैसे प्रोटीन में बदलेगी — और वही प्रोटीन जीवन के हर हिस्से को चलाता है।

लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस वैश्विक जीवन-कोड को तोड़कर एक नई दिशा की खोज की है। उन्होंने एक ऐसा जीवाणु (बैक्टीरिया) बनाया है जो पूरा कोड इस्तेमाल ही नहीं करता, फिर भी जीवित है।

इस बैक्टीरिया का नाम है Syn57, और इसके साथ जीवन की परिभाषा ही चुनौती में पड़ गई है।


जेनेटिक कोड: एक दोहराव भरा रहस्य

हमारे डीएनए में चार मुख्य आधार होते हैं: A (Adenine), T (Thymine), C (Cytosine), और G (Guanine)। जब ये तीन-तीन के समूहों में जुड़ते हैं, तो उन्हें Codon कहा जाता है। हर कोडोन किसी एक एमिनो एसिड से जुड़ा होता है — और ये एमिनो एसिड मिलकर प्रोटीन बनाते हैं।

लेकिन इसमें एक अजीब बात है — 64 में से केवल 20 एमिनो एसिड ही कोड होते हैं। यानी कई कोडोन एक ही एमिनो एसिड के लिए जिम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए, “Serine” नामक एमिनो एसिड को 6 अलग-अलग कोडोन बना सकते हैं।

ये दोहराव क्यों है? क्या यह कोई गुप्त जैविक फायदेमंद प्रणाली है, या बस एक संयोग?


Syn57:

ब्रिटेन की Medical Research Council Laboratory of Molecular Biology के वैज्ञानिकों, डॉ. वेस्ली रॉबर्टसन की अगुआई में, इस रहस्य को समझने के लिए उन्होंने E. coli नामक जीवाणु का डीएनए लिया और उसमें से 7 कोडोन पूरी तरह हटा दिए।

इस प्रयोग के लिए उन्हें ई. कोलाई के 40 लाख बेस के जीनोम में 100,000 से अधिक बदलाव करने पड़े। कई बार कोडोन एक-दूसरे से जुड़ते हैं या एक ही हिस्से में दो जीन होते हैं — जिससे थोड़ी सी गड़बड़ी जानलेवा हो सकती थी। लेकिन फिर भी, वैज्ञानिकों ने एक-एक समस्या हल की, और अंत में Syn57 नामक जीवाणु को तैयार किया।

हालांकि Syn57 जीवित है, लेकिन यह उतना ताकतवर नहीं है जितना सामान्य E. coli। जहां सामान्य ई. कोलाई हर 1 घंटे में अपनी संख्या दोगुनी कर सकता है, Syn57 को 4 घंटे लगते हैं। यह दर्शाता है कि कोडोन की कमी इसे कमजोर बनाती है — लेकिन जीवन की बुनियादी प्रक्रिया फिर भी चलती रहती है।


Syn57 के उपयोग

Syn57 सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि भविष्य की कई संभावनाओं का द्वार है:

  • वैज्ञानिक अब इसमें नए, कृत्रिम एमिनो एसिड को शामिल करने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे नई दवाएं और जैविक रसायन बनाए जा सकें।

  • इसकी बदली हुई भाषा (जेनेटिक कोड) इसे प्राकृतिक बैक्टीरिया से अलग बनाती है, जिससे अगर इसे पर्यावरण में छोड़ा जाए, तो इसके जीन बाहर नहीं फैल पाएंगे। यानी बायोसुरक्षा में भी यह सहायक हो सकता है।


तो क्या जेनेटिक कोड सिर्फ एक ‘जमी हुई दुर्घटना’ है?

1968 में नोबेल विजेता फ्रांसिस क्रिक ने कहा था कि शायद जेनेटिक कोड जैसा है, वैसा होने का कोई बड़ा कारण नहीं है। हो सकता है ये बस कई लाखों साल पहले हुई एक संयोगपूर्ण घटना का नतीजा हो, और अब इतनी जटिल हो गई है कि बदली नहीं जा सकती।

Syn57 के ज़िंदा रहने से यह सिद्धांत और मजबूत होता है। अगर जीवन बिना पूरे 64 कोडोन के चल सकता है, तो शायद जेनेटिक कोड का आज जैसा होना सिर्फ एक ‘फ्रोजन एक्सिडेंट’ है — कोई सटीक डिज़ाइन नहीं।

Syn57 एक तकनीकी चमत्कार है, लेकिन साथ ही यह हमें जीवन की गहराई और लचीलापन भी दिखाता है। जब विज्ञान सवाल पूछता है — “क्या ऐसा भी संभव है?” — तो उत्तर कई बार हमारे सोच से परे निकल आता है।

शायद आगे एक ऐसा समय आए, जब हम अपनी ज़रूरत के अनुसार जीवन के कोड को गढ़ सकें, और तब Syn57 को ही पहला कदम माना जाएगा — उस भविष्य की ओर, जहाँ हम प्रकृति के नियमों को न सिर्फ समझते हैं, बल्कि उन्हें आकार भी देते हैं।

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