हम सभी ने स्कूल में पढ़ा है — न्यूटन का तीसरा नियम: “हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।” लेकिन क्या हो अगर हम आपको बताएं कि मानव शुक्राणु (human sperm) इस बुनियादी नियम को चुनौती देता है?
जी हाँ, जापान के क्योटो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक केंता इशिमोटो के नेतृत्व में की गई एक नई शोध से पता चला है कि शुक्राणु जिस तरह से तैरते हैं, उसमें ऐसी आंतरिक शक्तियाँ शामिल होती हैं जो समान और विपरीत प्रतिक्रिया के सिद्धांत पर काम नहीं करतीं।
चिपचिपे वातावरण में भी सफल ‘स्विमिंग’
मानव शुक्राणु को तैरना होता है एक अत्यंत चिपचिपे और प्रतिरोधक वातावरण में — जैसे कि महिला प्रजनन तंत्र। यह वातावरण इतना घना होता है कि सामान्य गति के नियम वहां प्रभावी नहीं होते। तो सवाल उठता है — शुक्राणु आखिर कैसे आगे बढ़ता है?
ओड एलास्टो-हाइड्रोडायनामिक्स :
इसी रहस्य को सुलझाने के लिए शोधकर्ताओं ने एक नया सिद्धांत प्रस्तुत किया है —
“Odd Elastohydrodynamics” यानी “अजीब लोचद्रव गति-विज्ञान”।
यह सिद्धांत जीवित प्रणालियों पर लागू होता है जो खुद ऊर्जा उत्पन्न कर सकती हैं, जैसे कि शुक्राणु की पूंछ (flagellum)।
इस सिद्धांत के अनुसार, शुक्राणु की पूंछ केवल बाहरी तरल के प्रभाव से नहीं हिलती, बल्कि इसमें भीतर से ऊर्जा का संचार होता है — और वह भी एक विशेष दिशा में।
‘Odd Elasticity’: जब प्रतिक्रिया नहीं होती बराबर
शोध में पाया गया कि शुक्राणु की गति में जो तरंगें उत्पन्न होती हैं, वे समान और विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया नहीं देतीं। इसे कहा गया है: “Odd Elasticity” — यानी ऐसा लोच जहां प्रतिक्रिया पारंपरिक भौतिक नियमों का पालन नहीं करती।
इसका अर्थ है कि शुक्राणु की पूंछ में कुछ हिस्सों में ऊर्जा को सक्रिय रूप से डाला जाता है, जिससे असममित (asymmetric) गति उत्पन्न होती है। यही गति उसे चिपचिपे वातावरण में भी कुशलतापूर्वक तैरने की क्षमता देती है।
‘Odd-Elastic Modulus’ से ऊर्जा की गणना
वैज्ञानिकों ने एक नया मानक भी तैयार किया: Odd-Elastic Modulus।
इससे यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर के किस हिस्से में कितनी ऊर्जा डाली जा रही है, और वह ऊर्जा शुक्राणु की तैरने की दिशा और गति को कैसे प्रभावित कर रही है।
नतीजे चौंकाने वाले थे —
शुक्राणु की गति और ऊर्जा के स्थानों में पूर्ण समरूपता (perfect alignment) पाई गई। यह सिद्ध करता है कि शुक्राणु की चाल सिर्फ रचना नहीं, बल्कि रणनीति भी है।
इस खोज का महत्व क्यों है?
यह खोज सिर्फ जीवविज्ञान की किताबों तक सीमित नहीं रहेगी। इसके गहरे प्रभाव हैं:
बायोमेडिकल इंजीनियरिंग: अब ऐसे सूक्ष्म रोबोट बनाए जा सकते हैं जो शरीर के अंदर दवा पहुंचाने का कार्य करें — ठीक वैसे जैसे शुक्राणु तैरते हैं।
बांझपन (infertility) के इलाज में मदद: अलग-अलग शुक्राणुओं की गति की तुलना करके यह जाना जा सकता है कि कौन-सा शुक्राणु ज़्यादा सक्षम है।
माइक्रोस्कोपिक स्तर पर जीवन को समझने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम।