जब हम रीफ (Reef) की कल्पना करते हैं, तो आंखों के सामने एक रंगीन, जीव-जंतुओं से भरी हुई पानी के नीचे की दुनिया आती है — जैसे कि कोई जीवित वर्षावन। लेकिन हाल ही में अमेरिका के नेवाडा में खोजे गए जीवाश्म एक अलग कहानी सुनाते हैं।
ये जीवाश्म बताते हैं कि आज से 514 मिलियन साल पहले, जब पृथ्वी पर पहले-पहल जानवरों ने रीफ बनाए, तब की समुद्री दुनिया उतनी चहल-पहल वाली नहीं थी।
कैसे बने थे पहले रीफ?
ये प्राचीन रीफ स्पंज जैसे जीवों, जिन्हें आर्कियोसियाथिड्स कहा जाता है, द्वारा बनाए गए थे।
ये रीफ उथले समुद्रों में फैले हुए थे — साइबेरिया से लेकर आज के नेवाडा तक।
नेवाडा की Harkless Formation में आज भी ऐसे दर्जनों “पैच रीफ” पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ कुछ ही गज चौड़े हैं, लेकिन चूना पत्थर की कई परतों में फैले हुए हैं।
केसी बेनेट की शोध और निष्कर्ष:
University of Missouri की रिसर्चर केसी बेनेट और उनकी टीम ने इन चट्टानों से रेत के दानों जितने छोटे खोल निकाले। इन खोलों में छिपी थी प्राचीन समुद्री दुनिया की झलक।
इनमें शामिल हैं:
छोटे ब्रैकियोपॉड्स (brachiopods),
घोंघे जैसे मोलस्क,
और कांटेदार चैन्सेलोरिड्स।
इन जीवों को small shelly fauna कहा जाता है — ये जीव प्राचीन “Cambrian explosion” के समय के हैं जब जानवरों ने पहली बार खाल और खोल बनाना शुरू किया।
क्या रीफ से बढ़ती थी जैव विविधता?
आधुनिक रीफों में, जैसे-जैसे आप रीफ से दूर जाते हैं, जीवों की संख्या और विविधता कम होती जाती है। यह माना जाता है कि रीफ खाद्य स्रोत और आश्रय का केंद्र होते हैं। तो क्या प्राचीन रीफ भी ऐसा ही करते थे?
लेकिन बेनेट की टीम ने जब हज़ारों छोटे जीवों की गिनती की, तो नतीजे चौंकाने वाले थे:
कुछ परतों में रीफ के पास और दूर, दोनों जगह लगभग बराबर जीवों की संख्या थी।
कई जगहों पर कुछ ही जीवों की प्रजातियाँ पूरे क्षेत्र पर छाई हुई थीं, जबकि दूसरी प्रजातियाँ लगभग नदारद थीं।
इससे पता चला कि उस समय पानी का बहाव (hydrodynamics) और गाद की किस्म जैसे कारक शायद यह तय करते थे कि कौन-से जीव कहाँ बसेंगे — न कि रीफ की नज़दीकी।
टीम ने यह भी देखा कि किस तरह पत्थरों की बनावट (जैसे मोटे दानेदार या चिकने कीचड़ जैसे पत्थर) यह तय करती थी कि कौन-से जीवाश्म सुरक्षित बचते हैं।
मोटे पत्थर मजबूत खोल वाले जीवों को संभालते थे।
जबकि नरम कीचड़ जैसी परतें नाजुक स्पंज के कंकाल को संरक्षित कर लेती थीं।
इससे यह समझ आता है कि सिर्फ जीवों की संख्या देखना काफी नहीं — उनके संरक्षण के पीछे की भूवैज्ञानिक प्रक्रिया भी उतनी ही ज़रूरी है।
क्या ये रीफ बस एक प्रयोग थे?
शोध के अनुसार, ये archaeocyathid रीफ थोड़े समय के लिए ही बने और फिर गायब हो गए। यह उन्हें “जीवाश्म प्रयोग” बनाता है, न कि आधुनिक रीफ जैसे लंबे समय तक स्थिर रहने वाले पारिस्थितिक तंत्र।
यह विचार कार्बन-आइसोटोप जैसे रासायनिक डेटा से भी मेल खाता है, जो दिखाते हैं कि कैसे समुद्री रासायनिक संतुलन के बदलाव ने इन रीफों को प्रभावित किया।
प्राचीन रीफ से आज के लिए सबक
आज के कोरल रीफ अक्सर जैव विविधता के केंद्र होते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण वे धीरे-धीरे चपटे और कम गहरे होते जा रहे हैं।
यदि भविष्य में हमारे समुद्रों में भी ऐसे कम-जैवविविधता वाले रीफ रहेंगे — तो क्या हम उसी दिशा में जा रहे हैं, जैसी स्थिति करोड़ों साल पहले थी?
प्रकृति का खेलपलान एक जैसा नहीं रहता, और यही समझ हमें भविष्य की संरक्षण नीति तैयार करने में मदद कर सकती है।