कल्पना कीजिए, एक ऐसा मोबाइल फोन जो कभी भी चार्जिंग की जरूरत ही नहीं रखता, एक ऐसा रिमोट या घड़ी जिसका सेल कभी नहीं बदलना पड़े, और एक ऐसा कैमरा जो आपकी हर बेस्ट मूमेंट को बिना रुके कैप्चर करता जाए। विज्ञान की इस नई दुनिया में, न्यूक्लियर पावर्ड बैटरीज ऐसी ही तकनीकी क्रांति लेकर आ रही हैं। आइए, जानते हैं कैसे!
न्यूक्लियर बैटरी क्या है और ये कैसे काम करती है?
न्यूक्लियर बैटरी, जिसे एटॉमिक बैटरी या रेडियोआइसोटोप बैटरी भी कहा जाता है, रेडियोधर्मी तत्वों के क्षय से ऊर्जा उत्पन्न करती है। इसके विपरीत न्यूक्लियर रिएक्टर्स में चेन रिएक्शन का इस्तेमाल होता है। न्यूक्लियर बैटरीज इलेक्ट्रोकेमिकल नहीं होतीं, इसलिए इन्हें चार्ज या रिचार्ज नहीं किया जा सकता। इनकी ऊर्जा-घनत्व और लाइफ स्पैन काफी लंबा होता है, इसलिए इन्हें खासकर स्पेसक्राफ्ट, पेसमेकर, और दूरस्थ वैज्ञानिक स्टेशन जैसे अनुप्रयोगों के लिए डिजाइन किया गया है।
बेजिंग बीटा वोल्ट: सिक्के जितनी छोटी, 50 साल की बैटरी
चीन की एक कंपनी, बेजिंग बीटा वोल्ट न्यू एनर्जी टेक्नोलॉजी, ने एक ऐसी बैटरी तैयार की है जो आकार में तो सिक्के जितनी छोटी है लेकिन बिना चार्जिंग और मेंटेनेंस के पूरे 50 साल तक काम कर सकती है। इसमें निकल 63 रेडियोआइसोटोप का उपयोग किया जाता है, जिसे दो सिंथेटिक डायमंड लेयर्स के बीच में रखा जाता है। निकल 63 जब डीके होता है, तो यह हाई एनर्जी बीटा पार्टिकल्स (हाई स्पीड इलेक्ट्रॉन्स) छोड़ता है, जिससे डायमंड लेयर के अंदर इलेक्ट्रॉन्स का आवागमन होता है और बिजली उत्पन्न होती है।
डायमंड के उपयोग की खासियत और चुनौतियाँ
डायमंड, जो दुनिया की सबसे मजबूत सामग्रियों में से एक है, इन बैटरियों में मुख्य भूमिका निभाता है। चूँकि निकल 63 के बीटा पार्टिकल्स की पेनिट्रेशन क्षमता कम होती है, इसलिए ये डायमंड की परत को पार नहीं कर पाते और बैटरी सुरक्षित बनी रहती है। लेकिन डायमंड के इस्तेमाल की वजह से इसकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जिससे ये बैटरियाँ महंगी साबित हो सकती हैं।
क्या ये बैटरियाँ सुरक्षित हैं?
रेडियोएक्टिविटी सुनते ही हमारे दिमाग में खतरे का ख्याल आता है, लेकिन ये न्यूक्लियर बैटरियाँ अन्य रिएक्टर-आधारित न्यूक्लियर पावर स्रोतों से अलग हैं। इनमें निकल 63 का उपयोग होता है, जो वीक न्यूक्लियर फोर्स से पावर्ड है और कम पेनिट्रेटिंग पावर वाले बीटा पार्टिकल्स उत्पन्न करता है। ये पारंपरिक यूरेनियम 235 जितने खतरनाक नहीं होते। इसके बावजूद, अतिरिक्त सुरक्षा के लिए, कंपनी इन बैटरियों का शुरुआती उपयोग केवल मेडिकल और स्पेस डिवाइसेज तक सीमित रखेगी।
संभावनाएँ और सीमाएँ: अगली पीढ़ी की बैटरियों का भविष्य
इन न्यूक्लियर बैटरियों का भविष्य उज्जवल है, क्योंकि ये कई अत्यंत आवश्यक अनुप्रयोगों को निरंतर और बिना रुकावट ऊर्जा प्रदान कर सकती हैं। लेकिन ये डायमंड जैसे बेसकिमती मटेरियल से बनी होती है जोकि एक महंगी हैं और आम उपभोग्कता तक इसे कैसे पहुचाया जाये ,ये अपने आप में एक चुनौती हो सकता है, हालाँकि इस प्रकार की बैटरीज का प्रयोग हाई एफिशिएंसी computers, medical equipments, mncs में उपयोग में लाया जा सकता है|
इन न्यूक्लियर बैटरियों के आगमन से, अब यह संभव हो सकता है कि हमारे डिवाइसेज में वर्षों तक बिना किसी चार्जिंग की आवश्यकता के पावर सप्लाई होती रहे। ये क्रांतिकारी तकनीक न केवल चिकित्सा, अंतरिक्ष और अनुसंधान के क्षेत्र में उपयोगी साबित होगी, बल्कि आने वाले समय में आम लोगों के जीवन को भी नई दिशा दे सकती है।