लखनऊ स्थित बीरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान (BSIP) की एक टीम ने असम की खदानों में लगभग 2.4 करोड़ साल पुराने पौधों की पत्तियाँ खोजी हैं। ये सिर्फ किसी भी पौधे की नहीं, बल्कि Nothopegia नामक पौधों की पत्तियाँ थीं — जो आज सिर्फ पश्चिमी घाटों में पाए जाते हैं। यानि, वो पौधे जो अब पश्चिमी घाटों में छिपे हुए हैं, कभी असम की धरती पर भी खुलेआम फले-फूले थे।
कैसे बदला यह सब?
हिमालय का उदय — जब टेक्टोनिक प्लेट्स टकराईं और दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला बनी। इसके साथ-साथ बदले मौसम, बारिश और हवा के पैटर्न। साथ ही पूर्वोत्तर भारत धीरे-धीरे ठंडा और कम आर्द्र होता गया। और उष्णकटिबंधीय पौधे, जैसे Nothopegia, वहां से लुप्त हो गए।
लेकिन ये पौधे पश्चिमी घाटों में बचे रह गए, क्योंकि वहाँ का जलवायु स्थिर और अनुकूल बना रहा।
आधुनिक तकनीक से खुला पुराना राज़
वैज्ञानिकों ने इस खोज की पुष्टि CLAMP (Climate Leaf Analysis Multivariate Program) नामक एक जलवायु विश्लेषण उपकरण से की।
इसके अनुसार, लेट ओलिगोसीन युग (करीब 24 मिलियन साल पहले) में असम का मौसम गर्म और नम था — बिल्कुल वैसा जैसा आज वेस्टर्न घाट्स में है।
इसका मतलब है कि Nothopegia जैसे पौधे उस समय वहां स्वाभाविक रूप से उगते थे।
इस खोज से एक बात और सामने आई —
जलवायु परिवर्तन कोई नई बात नहीं है।
प्रकृति ने इससे पहले भी पौधों और जीवों को विलुप्त या विस्थापित होते देखा है।
लेकिन अब हालात अलग हैं।
“यह खोज सिर्फ अतीत की खिड़की नहीं है — यह भविष्य को समझने का ज़रिया है,”
— डॉ. हर्षिता भाटिया, शोध सह-लेखिका
वे बताती हैं कि जैसे Nothopegia ने समय के साथ अपना ठिकाना बदल लिया, वैसे ही आज की कई प्रजातियाँ जलवायु संकट से जूझ रही हैं।
क्या वेस्टर्न घाट्स भी खो जाएंगे?
हाल के शोध बताते हैं कि:
2050 तक, 60% से ज़्यादा उष्णकटिबंधीय स्थानिक प्रजातियाँ (endemic species) विलुप्त हो सकती हैं।
वेस्टर्न घाट्स, जो जैव विविधता का खजाना हैं, अपनी सारी स्थानीय वनस्पति खो सकते हैं।
और अगर ऐसा हुआ, तो हम न सिर्फ वनों को, बल्कि उनके साथ जुड़े करोड़ों साल पुराने इतिहास को भी खो देंगे।