हमारे जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो बदलाव की दस्तक होती हैं, और इन्हीं में से एक अटल सत्य है मृत्यु। मृत्यु एक सार्वभौमिक सत्य है जिसे कोई बदल नहीं सकता। हमारे लिए इसका मतलब होता है अंत, मगर कुछ लोग इसे चौथे आयाम का नाम देते हैं। उनका मानना है कि मृत्यु के बाद इंसान सिर्फ चेतना की अवस्था यानी कॉन्शियस स्टेट को छोड़ता है, लेकिन अचेतन रूप में यानी सबकॉन्शियसली वो तब भी जिंदा रहता है।
ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने यह अनुभव किया है कि वे कुछ देर के लिए मरकर फिर से जिंदा हो गए, और इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनके जीवन जीने का नजरिया ही बदल दिया। इसे ही नियर डेथ एक्सपीरियंस कहा जाता है। इसी अनुभव को लेकर डॉक्टर सुशीला का एक खास वाकया है जो राजस्थान के सिरोही जिले के कालंद्री गांव में उनके साथ घटा।
डॉक्टर सुशीला अपने घर में क्वार्टर में डस्टिंग कर रही थीं, और अचानक उन्हें हल्का पेट दर्द महसूस हुआ। यह दर्द अचानक तेज़ हो गया, और उन्होंने अपने पति को पुकारा, लेकिन कुछ ही पलों में वे गिर पड़ीं। गिरने के बाद उन्होंने महसूस किया कि वे बिस्तर पर पड़ी हैं, पर एक अजीब बात थी कि वे अपने शरीर को खुद देख पा रही थीं। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे वहीं खड़ी हुई हैं, जबकि उनका शरीर नीचे पड़ा है।
यह एहसास उनके लिए एकदम अनोखा था। खुद को प्रूफ करने के लिए उन्होंने ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खुद को देखने की कोशिश की, लेकिन कांच में वे दिखाई नहीं दीं। इससे वे घबरा गईं। अचानक उनके ऊपर कुछ तरंगों का एहसास हुआ, जो उनके सिर पर टच हो रही थीं। वे समझ नहीं पा रहीं थीं कि ये क्या हो रहा है, पर तभी एक आवाज़ आई जैसे कह रही हो – देखो। उन्होंने अपनी शरीर की तरफ दोबारा देखा, और अब उनके पास एक ऐसी एबिलिटी आ गई कि वे अपने शरीर को अंदर से देख पा रही थीं, जैसे शरीर का ऊपरी हिस्सा ट्रांसपेरेंट हो गया हो।
अपने मेडिकल नॉलेज के चलते वे देख रही थीं कि शरीर के सभी अंग सही तरह से काम कर रहे हैं, लेकिन दिल की गति तेज़ थी, जैसे 200-250 की स्पीड में हो। उन्होंने समझा कि दिल ब्लड को फेंक नहीं पा रहा, और इसी वजह से शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी, जिससे दर्द हो रहा था। यह सब महसूस करते हुए उन्होंने खुद को इस शरीर से बाहर निकलता हुआ पाया।
बाहर का एहसास उन्हें बेहद हल्का और आनंदमयी लग रहा था। वे इतनी खुश थीं कि उन्हें अपनी इस नई अवस्था में रहना अच्छा लगने लगा। उन्होंने सोचा कि जीवन तो ऐसा ही होना चाहिए – शांति और सुकून से भरा। इतने में उन्होंने अपने पति को देखा जो उन्हें जिंदा करने की कोशिश में लगे हुए थे, पर उन्हें लगा कि वे उसे नहीं देख पा रहे हैं। वे खुद को देख पा रही थीं, सब देख पा रही थीं, लेकिन उनके पति जैसे उनकी मौजूदगी को महसूस ही नहीं कर पा रहे थे।
तभी दोबारा वही तरंगें महसूस हुईं और एक आवाज़ आई – यहीं रुको। इस आवाज़ को सुनकर वे थोड़ा घबरा गईं। उन्होंने इस आवाज़ को पहचानने की कोशिश की, पर कुछ समझ नहीं आया। पर इतना एहसास हुआ कि यह उनकी मदद कर रहा है और शायद उनके हित में ही बोल रहा है। वे मान गईं और वहीं खड़ी रहीं। उन्होंने देखा कि उनके पति का चेहरा पहले पीला हो गया था, पर जैसे ही उनका दिल फिर से सामान्य हो गया, उनके चेहरे पर थोड़ी सी खुशी लौट आई। डॉक्टर सुशीला ने अपने पति के चेहरे की इस खुशी को देखा और सोचा कि अच्छा है, सब कुछ ठीक हो गया।
तभी तीसरी बार फिर तरंगों का एहसास हुआ और आवाज़ आई – क्या अब संतुष्ट हो? डॉक्टर सुशीला ने कहा – हाँ, अब तो सब ठीक है। इस पर आवाज़ ने कहा – तो जाओ। और उसी पल वे एक हल्के झटके से वापस अपने शरीर में आ गईं।
इस अनुभव के बाद उनके लिए अपने शरीर में वापस लौटना आसान नहीं था। शरीर में वज़न और कमजोरी महसूस हो रही थी। आँखों में आँसू आ गए, और उन्हें समझ आ गया कि जो उन्होंने अनुभव किया, वह कोई सपना या भ्रम नहीं था। कुछ दिनों तक वे चुपचाप रहीं, किसी से कुछ नहीं कहा। जब उन्होंने अपने पति को इस घटना के बारे में बताने की कोशिश की, तो वे इसे ऑक्सीजन की कमी का असर मानकर इसे अनसुना कर गए।
इस अनुभव ने डॉक्टर सुशीला की ज़िंदगी का नजरिया पूरी तरह बदल दिया। उनके लिए यह घटना उनके जीवन का वह हिस्सा बन गई जिसने उन्हें मौत के बाद की दुनिया का नया एहसास कराया।