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आज हम इंसान जिस धरती पर अरबों की संख्या में फैले हुए हैं, कभी हमारी प्रजाति का अस्तित्व सिर्फ 1,280 पूर्वजों पर टिका हुआ था।
जी हाँ, एक नई जीनोमिक्स (genomics) स्टडी से खुलासा हुआ है कि लगभग 8 से 9 लाख साल पहले, मानव पूर्वजों की संख्या एक बेहद खतरनाक स्तर तक गिर गई थी — इतनी कम कि उस समय हम लगभग विलुप्त हो गए होते।
Sapienza University of Rome के प्रोफेसर जॉर्जियो मंज़ी की रिसर्च :
इटली के Sapienza University of Rome के प्रोफेसर जॉर्जियो मंज़ी और उनकी टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि एक लंबे समय — लगभग 1.17 लाख वर्षों तक — हमारे पूर्वजों की कुल आबादी केवल 1,280 प्रजननशील व्यक्तियों तक सीमित थी।
“यह संख्या उन जीवों के बराबर है जिन्हें आज हम विलुप्त होने की कगार पर मानते हैं,”
– प्रो. जॉर्जियो मंज़ी
जलवायु परिवर्तन बना विलुप्ति की वजह?
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह “बॉटलनेक” यानी आबादी में तीव्र गिरावट शायद एक भयंकर जलवायु परिवर्तन के कारण हुई।
उस समय पृथ्वी पर ग्लेशियर स्थायी होने लगे थे,
समुद्री सतह के तापमान में गिरावट आई,
अफ्रीका और यूरेशिया में लंबे समय तक सूखा पड़ा।
इस काल में fossil रिकॉर्ड भी लगभग गायब है — न अफ्रीका में और न ही यूरोप या एशिया में इस समय के पर्याप्त जीवाश्म मिले हैं।
क्या इसी से हुआ नई मानव प्रजाति का जन्म?
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस संकट के कारण ही एक नई मानव प्रजाति का विकास हुआ — Homo heidelbergensis, जो माना जाता है कि हम, निएंडरथल और डेनिसोवन्स — तीनों की साझा पूर्वज प्रजाति रही होगी।
“कई बार नई प्रजातियाँ छोटी और अलग-थलग आबादी में ही जन्म लेती हैं,”
– प्रो. मंज़ी
जीनोम में छुपी कहानी
इस शोध में 3,154 जीवित लोगों के जीनोमिक डेटा को शामिल किया गया, जिनमें से:
10 समूह अफ्रीका से और
40 समूह गैर-अफ्रीकी देशों से थे।
जीन विश्लेषण से यह पता लगाया गया कि कब-कब नए जीन उभरे, और कितनी विविधता फैली।
जितना ज्यादा समय बीता होता है, उतनी ही विविधताएं जीन में आती हैं — यही तकनीक इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि कब आबादी कम और कब बढ़ी।
नतीजा?
सभी अफ्रीकी समूहों में यह बॉटलनेक स्पष्ट दिखा,
जबकि गैर-अफ्रीकी समूहों में इसका असर कमज़ोर रहा — शायद इसलिए क्योंकि जब इंसान अफ्रीका से बाहर निकले, तो उन्होंने एक नया बॉटलनेक झेला, जिसने पुराने संकेतों को ढँक दिया।
अब वैज्ञानिक यह जानना चाहते हैं कि क्या निएंडरथल और डेनिसोवन्स जैसे हमारे प्राचीन “कज़िन्स” के जीनोम में भी इसी तरह का बॉटलनेक दिखाई देता है। अगर ऐसा हुआ, तो यह हमें यह समझने में मदद करेगा कि प्रजातियाँ कब, कहाँ और क्यों अलग हुईं।