
सदियों से भारत में एक खास प्रकार के कीट से गहरे लाल रंग का प्राकृतिक रंग बनाया जाता रहा है — इसे हम लाख डाई (lac dye) कहते हैं। चाहे लकड़ी की सजावट हो, रेशमी वस्त्रों का रंग हो या सौंदर्य प्रसाधन, इस रंग का उपयोग प्राचीन भारत से होता आ रहा है। लेकिन एक सवाल लंबे समय से वैज्ञानिकों को परेशान करता रहा — इस चटक लाल रंग का असली स्रोत क्या है? क्या ये लाख कीट खुद इसे बनाता है?
हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु की एक नई रिसर्च ने इस रहस्य से पर्दा उठाया है — और इसका उत्तर उतना ही चौंकाने वाला है, जितना दिलचस्प।
रिसर्च के अनुसार, लाख कीट (Kerria lacca) की यह चमकदार लाल रंगत वास्तव में खुद उसकी नहीं है, बल्कि उसके शरीर में रहने वाले एक सूक्ष्म और अदृश्य सह-जीवी फफूंद की देन है।
इस फफूंद का नाम वैज्ञानिकों ने दिया है — Kerria lacca yeast-like symbiont (KLYLS)।
लाख का अर्थ
“लाख” शब्द संस्कृत के लाक्षा (लाक्षा = एक लाख) से आया है, क्योंकि लाख कीटों की संख्या बहुत अधिक होती है। इन्हीं कीड़ों से शेलैक (shellac) नामक प्राकृतिक रेजिन भी बनती है, जिसका उपयोग आज भी पॉलिश और सजावटी सामानों में होता है।
शोध में क्या पाया गया?
1. जीनोम अध्ययन से शुरुआत
शोधकर्ताओं ने लाख कीट और उसके दो सहजीवी एक बैक्टीरिया Wolbachia और KLYLS फफूंद के पूरे जीनोम का विश्लेषण किया|
2. पिगमेंट कहां बनता है?
लाख का लाल रंग लैकाइक एसिड (laccaic acid) से आता है, जो एक polyketide नामक जटिल कार्बनिक यौगिक है।
शोध में पता चला कि लाख कीट और Wolbachia में ऐसे किसी भी जीन की मौजूदगी नहीं थी जो polyketide बना सके। लेकिन KLYLS के जीनोम में एक खास enzyme cluster (NR-PKS) मिला — जो इस पिगमेंट को बनाने की प्रमुख भूमिका निभाता है। लैकाइक एसिड के निर्माण में एक और अमीनो एसिड, टायरोसीन भी जरूरी है। और हैरानी की बात ये कि, KLYLS अकेला ऐसा जीव है जो स्वयं टायरोसीन संश्लेषण करने में पूर्णतः सक्षम है|
रिसर्चर्स ने लाख कीटों पर फफूंद-मारक दवा (fungicide) का प्रयोग किया। जिसके परिणामस्वरूप KLYLS की मात्रा कम हुई और लाल रंग भी फीका हो गया। कीटों का आकार छोटा और वजन हल्का हो गया।
इससे यह साबित हुआ कि KLYLS सिर्फ रंग नहीं बनाता, बल्कि कीट को जरूरी पोषक तत्व भी देता है, जो उसके भोजन (पेड़ के रस) में नहीं होते।इस खोज ने न सिर्फ एक पुराने रहस्य को सुलझाया, बल्कि यह भी दिखाया कि प्रकृति में सहजीविता (symbiosis) कितनी शक्तिशाली होती है।
जैसे हमारी कोशिकाओं में मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया भी कभी एक स्वतंत्र सूक्ष्मजीव था।
उसी तरह लाख कीट ने रंग और पोषण बनाने का काम एक फफूंद को ‘आउटसोर्स’ कर दिया है।