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चंद्रमा पर मिले ज्वालामुखी के अवशेष आखिर हमसे क्या कहना चाहते है ?

         

IO, जो बृहस्पति के चार मुख्य चंद्रमाओं में से एक है, हमारे सौर मंडल का सबसे ज्वालामुखीय सक्रिय पिंड है। यह चंद्रमा आकार में लगभग हमारे चंद्रमा के बराबर है और इसके सतह पर करीब 400 ज्वालामुखी पाए जाते हैं। 1979 में नासा के वॉयजर 1 मिशन के दौरान वैज्ञानिक लिंडा मोराबितो ने इसकी सतह पर ज्वालामुखीय गतिविधि की पहली खोज की थी। तब से, वैज्ञानिक इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे कि इन ज्वालामुखियों को लावा कहाँ से मिलता है।

हाल ही में, नासा के जूनो मिशन से IO चन्द्रमा के बारे में काफी कुछ नयी जानकारियां हासिल हुई हैं, चलिए जानते है इसके  बारे में विस्तार से |


image credit: Nasa official website

 IO के मैग्मा चैम्बर्स की खोज
जूनो अंतरिक्षयान ने दिसंबर 2023 और फरवरी 2024 में आयो के बेहद करीब से उड़ान भरी, केवल 1,500 किलोमीटर की दूरी पर। इन उड़ानों के दौरान, जूनो ने आयो के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को मापा और इसके डेटा से पता चला कि आयो के अंदरूनी हिस्से में कोई वैश्विक मैग्मा महासागर नहीं है।

आयो की कक्षा इसकी सतह पर अत्यधिक ज्वालामुखीय गतिविधियों का कारण बनती है। इसका कारण बृहस्पति का शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण है, जो आयो को उसकी कक्षा में लगातार खींचता और दबाता रहता है। इसे टाइडल फ्लेक्सिंग कहा जाता है, जिससे अंदरूनी भाग में गर्मी उत्पन्न होती है और मैग्मा पिघलता है। लेकिन जूनो के डेटा ने साबित किया कि आयो की ज्वालामुखीय गतिविधियां स्थानीय मैग्मा चैंबरों से संचालित होती हैं, न कि किसी व्यापक मैग्मा महासागर से।

इस खोज का महत्व केवल आयो तक सीमित नहीं है। यह हमारे सौर मंडल के अन्य चंद्रमाओं, जैसे यूरोपा और एन्सेलेडस, और यहां तक कि बाह्यग्रहों (एक्सोप्लैनेट्स) के अध्ययन में भी नई दृष्टि प्रदान करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आयो का अध्ययन हमें ग्रहों और चंद्रमाओं के निर्माण और उनके विकास को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगा।

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