क्या आपने कभी सोचा है कि पृथ्वी जैसे ग्रह कैसे बनते हैं? या फिर गैस से बने बृहस्पति जैसे विशाल ग्रह या बर्फीले नेपच्यून जैसे ग्रह?
इसका जवाब छिपा है उन नवजात तारों में, जो अभी-अभी ब्रह्मांड में पैदा हुए हैं और जिनके चारों ओर धूल और गैस की मोटी डिस्क घूम रही है।
एक नई खोज ने अब इस रहस्य को समझने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है — और इस खोज की शुरुआत होती है धरती से 16,000 फीट ऊपर, चिली के एंडीज़ पहाड़ों में।
यह खोज अमेरिका की University of Wisconsin–Madison के वैज्ञानिकों ने की। जिसके लिए वैज्ञानिको ने चिली के पहाड़ों में लगे 66 विशाल रेडियो टेलीस्कोप की मदद ली और ये टेलिस्कोप Atacama Large Millimeter/submillimeter Array, (ALMA) नाम से जाने जाते हैं |
इन टेलीस्कोप्स ने 30 नवजात तारों की चारों ओर घूमती प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क (ग्रहों को जन्म देने वाली डिस्क) का बारीकी से अध्ययन किया — और यहीं से खुला एक नया अध्याय।
वैज्ञानिकों ने जिन तारों का अध्ययन किया, उनकी उम्र 10 लाख से 50 लाख साल तक थी। सुनने में तो बहुत ज़्यादा लगता है, लेकिन ये तारे दरअसल अभी अपने बचपन में हैं — क्योंकि हमारे सूरज की उम्र 4.5 अरब साल है! इन तारों के चारों ओर घुमती हुई डिस्क जोकि 99% गैस और 1% धूल से बनी होती है,प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क कहलाती है| यहीं से ग्रह जन्म लेते हैं — लेकिन किस तरह के ग्रह बनेंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस डिस्क में गैस और धूल कितनी और कब तक रहती है।
वैज्ञानिकों ने गैस की मात्रा कैसे मापी?
पहले तो वैज्ञानिक कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के ज़रिए गैस का अनुमान लगाते थे, लेकिन वो तरीका सटीक नहीं था। इस नई स्टडी में उन्होंने एक अलग आयन N₂H⁺ का सहारा लिया। यह आयन तब बनता है जब CO कम होता है — और इससे उन्हें पता चला कि:
गैस की मात्रा शुरुआत में बहुत तेज़ी से घटती है, और फिर धीरे-धीरे घटती है,
जबकि धूल की मात्रा लगातार कम होती रहती है।
अब इसका मतलब समझिए:
अगर किसी डिस्क में बृहस्पति जैसे गैस ग्रह बनने हैं, तो उन्हें शुरुआती कुछ लाख सालों में ही बनना होगा — जब गैस ज़्यादा है।
लेकिन पृथ्वी जैसे पथरीले ग्रहों को बनाने के लिए धूल काफी होती है — और वो करोड़ों सालों तक टिक सकती है। यानी चट्टानी ग्रहों को बनने में थोड़ा और वक्त मिल जाता है।
गैस कहाँ चली जाती है?
यह भी पाया गया कि डिस्क से गैस “डिस्क-विंड” के ज़रिए उड़ सकती है। जब गैसें चुंबकीय रेखाओं (magnetic fields) से गुजरती हैं, तो वे तेज़ रफ्तार से बाहर निकल जाती हैं — जैसे कोई हवा पत्तों को उड़ाकर ले जाए।
ग्रहों का बनना कोई जादू नहीं, बल्कि एक लंबी प्रक्रिया है — जिसमें गैस, धूल, चुंबकीय ताकतें और समय मिलकर एक नई दुनिया बनाते हैं।