गोल्डन गेट ब्रिज का निर्माण एक ऐसा अद्भुत सफर है, जो तकनीकी कौशल, समुद्र की गहराई और मानव संकल्प का प्रतीक है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती थी दक्षिणी टावर का निर्माण, जिसे प्रशांत महासागर की उग्र लहरों के बीच बनाना पड़ा।
गोल्डन गेट ब्रिज का निर्माण:
सबसे पहले, दक्षिण टावर के लिए मजबूत नींव तैयार की गई। समुद्र तल से 50 फीट नीचे की सतह पर विस्फोटक तकनीक से मलबा हटाकर एक मजबूत आधार बनाया गया। इस आधार पर आरसीसी (कंक्रीट) स्लैब का निर्माण किया गया, ताकि वर्कर्स समुद्र की तेज धाराओं से सुरक्षित रहें। टावर की नींव को स्तरित करने के बाद स्टील का ढांचा तैयार किया गया और इसे मजबूत बनाने के लिए आरसीसी नींव बनाई गई।images credit : gettyimages
इसके बाद विशाल टावरों का निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया में स्टील की प्लेटों और होलो स्टील सेल्स का इस्तेमाल किया गया। इन सेल्स को बड़े कौशल के साथ जोड़ा गया, ताकि टावर का आकार और मजबूती योजना के अनुसार हो। मिस्टर स्ट्रॉस ने इस सैलरी स्ट्रक्चर को इतना कुशलतापूर्वक डिजाइन किया कि यह मजबूत और किफायती दोनों साबित हुआ।
टावर तैयार होने के बाद मेन केबल्स का निर्माण शुरू हुआ। गोल्डन गेट ब्रिज की मेन केबल्स 27,000 छोटे स्टील तारों से बनी हैं, जिनकी कुल लंबाई 1,29,000 किलोमीटर है। इन तारों को जोड़ने के लिए पहले सपोर्ट वायर बिछाए गए। फिर स्पिनिंग मिल्स के जरिए इन तारों को टावरों के ऊपर से गुजारा गया और अंत में हाइड्रोलिक प्रेस का इस्तेमाल कर इन तारों को कसकर दबाया गया। यही वजह है कि मेन केबल एक ठोस पाइप जैसी दिखाई देती है।
मेन केबल्स के बाद, सस्पेंशन केबल्स और रोडवे का निर्माण किया गया। इन कंक्रीट से बने हिस्सों को इतनी मजबूती से डिजाइन किया गया कि यह भूकंप और समुद्र की लहरों जैसी आपदाओं का भी सामना कर सके। निर्माण के हर चरण में वर्कर्स ने कड़ी मेहनत और कुशलता का प्रदर्शन किया।