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शोध में पता चला कि करीब 1.5 करोड़ साल पहले, धरती ने अरबों टन पानी को सोख लिया

जब भी हम समुद्र के स्तर में बदलाव की बात करते हैं, तो ज़्यादातर लोग जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों के पिघलने या ग्लोबल वार्मिंग को इसकी वजह मानते हैं। लेकिन हाल ही में फरवरी 2025 में प्रकाशित एक दिलचस्प अध्ययन ने इस धारणा को हिला कर रख दिया है। इस शोध में पता चला कि करीब 1.5 करोड़ साल पहले, धरती ने अरबों टन पानी को संग्रहीत कर लिया, जिससे समुद्र का स्तर लगभग 30 मीटर तक गिर गया।

यह अध्ययन अमेरिकी भूभौतिकी संघ (AGU) के पोर्टल पर प्रकाशित हुआ है और इसमें वैज्ञानिकों ने दिखाया कि सिर्फ जलवायु ही नहीं, बल्कि धरती के अंदर होने वाली भूगर्भीय हलचलें भी समुद्र के स्तर को गहराई से प्रभावित कर सकती हैं।


क्या हुआ था 15 मिलियन साल पहले?

लगभग 15 से 6 मिलियन साल पहले, धरती के महासागरीय सतह (oceanic crust) में एक बड़ा बदलाव हुआ। टेक्टोनिक प्लेट्स की गतिविधियों के कारण, महासागर की सतह धीरे-धीरे गहरी होती गई और समुद्र के नीचे की ज़मीन धरती के अंदर धंसने लगी

इस प्रक्रिया से नई महासागरीय सतह का बनना 35% तक धीमा हो गया, जिससे महासागर के तल में अधिक पानी समाने की जगह नहीं रही और इसका सीधा असर समुद्र के स्तर पर पड़ा। परिणामस्वरूप, समुद्र का स्तर 26 से 32 मीटर तक कम हो गया।


टेक्टोनिक प्लेट्स और समुद्र का रिश्ता

धरती की टेक्टोनिक प्लेटें लगातार हिलती रहती हैं। जब ये प्लेटें अलग होती हैं, तो उनके बीच से मैग्मा निकलकर नई सतह बनाता है। धीरे-धीरे यह नई सतह पुरानी हो जाती है और वह सबडक्शन ज़ोन में जाकर फिर से धरती के अंदर समा जाती है।

लेकिन जब यह चक्र धीमा हो गया, तो महासागर के तल की ऊंचाई में गिरावट आई और पानी को समाने की क्षमता कम हो गई। यही वजह थी कि समुद्र का स्तर गिरा, और इसका असर पूरी पृथ्वी पर देखने को मिला।


भूगर्भीय घटनाओं ने जलवायु को कैसे प्रभावित किया?

इस घटना ने केवल समुद्र के तल को ही नहीं बदला, बल्कि पृथ्वी के जलवायु तंत्र पर भी गहरा प्रभाव डाला। जैसे ही महासागर की नई सतह बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ी, धरती के अंदर से बाहर निकलने वाली गर्मी भी कम हो गई, जिससे ज्वालामुखीय गतिविधियाँ भी घटीं।

ज्वालामुखी विस्फोटों से वातावरण में बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) निकलती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देती है। लेकिन जब विस्फोट कम हुए, तो वातावरण में CO₂ भी कम हुआ, और इससे पृथ्वी का तापमान गिरा।

इस ठंडे मौसम ने बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों के विस्तार में मदद की, जिससे और भी ज्यादा पानी ज़मीन पर जमा हो गया, और समुद्र का स्तर और गिर गया।


 

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