कभी सोचा है कि अगर किसी जिंदा इंसान का दिमाग बीच से दो हिस्सों में काट दिया जाए तो क्या होगा? सुनने में तो ये किसी साइंस फिक्शन फिल्म की कहानी लगती है, पर ये सचमुच हुआ था। आज से करीब 60 साल पहले, 1960 के दशक में, एक नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वैज्ञानिक रॉजर स्पेरी और उनके छात्र माइकल गज्जानिगा ने ऐसा ही कुछ किया। उन्होंने कुछ लोगों के दिमाग को दो हिस्सों में बांटकर देखा कि इंसान का दिमाग कैसे काम करता है और हमारी सोच, हमारे फैसले, हमारा “मैं” क्या है। उनकी खोज ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। तो चलो, इस कहानी को शुरू से समझते हैं, आसान भाषा में।
जो की कहानी: एक सैनिक और उसका दिमाग
ये कहानी शुरू होती है जो से। जो कोई सुपरहीरो नहीं था, बल्कि एक साधारण इंसान था, जो दूसरे विश्व युद्ध में सैनिक था। जंग के दौरान उसके सिर में चोट लगी। पहले तो सब ठीक लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ने लगी। उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। हर हफ्ते दो-तीन बार उसे ऐसे झटके लगते कि वह अपने शरीर पर काबू नहीं रख पाता। उस वक्त मिर्गी का इलाज ढूंढना डॉक्टरों के लिए बहुत मुश्किल था। दवाइयां काम नहीं कर रही थीं, और जो जैसे कई सैनिकों की हालत बिगड़ती जा रही थी।
उसी दौरान रॉजर स्पेरी नाम के एक वैज्ञानिक कुछ अलग सोच रहे थे। उन्होंने बिल्लियों और बंदरों पर कई साल तक प्रयोग किए थे। उन्होंने देखा कि अगर जानवरों के दिमाग के बीच का हिस्सा, जिसे कॉर्पस कैलोसम कहते हैं, काट दिया जाए, तो भी वे चलते-फिरते और खाते-पीते थे जैसे कुछ हुआ ही न हो। स्पेरी को लगा कि शायद इंसानों में भी ऐसा हो सकता है। उन्होंने सोचा कि अगर दिमाग के दो हिस्सों को अलग कर दिया जाए, तो मिर्गी के दौरे शायद एक तरफ ही रहें और पूरे दिमाग में न फैलें। यह एक जोखिम भरा विचार था, लेकिन जो की हालत इतनी खराब थी कि डॉक्टरों ने इसे आजमाने का फैसला किया।
1962 में जो की सर्जरी हुई। उसके दिमाग के बीच का “हाईवे” – कॉर्पस कैलोसम – काट दिया गया, जो दिमाग के बाएं और दाएं हिस्से को जोड़ता है। सर्जरी कामयाब रही। जो के दौरे कम हो गए। वह फिर से अपने रोजमर्रा के काम करने लगा। बाहर से देखने पर लगता ही नहीं था कि उसके दिमाग के साथ कुछ हुआ है। लेकिन जब स्पेरी और गज्जानिगा ने जो को गौर से देखा, तो कुछ अजीब चीजें सामने आईं।
दो हाथ, दो दिमाग?
सर्जरी के बाद जो की जिंदगी में कुछ ऐसा होने लगा, जो किसी को समझ नहीं आ रहा था। मान लो उसे कोई फैसला लेना है – जैसे कि कौन सी शर्ट पहने? उसका एक हाथ शर्ट उठाता, तो दूसरा हाथ उसे फेंक देता। कभी वह कुछ खाने की कोशिश करता, तो उसका बायां हाथ दाहिने हाथ से चीज छीन लेता। एक बार तो उसने कुछ देखा और कहा, “मुझे कुछ नहीं दिखा,” लेकिन जब उसे वही चीज कागज पर बनाने को कहा गया, तो उसने कुछ और ही बना दिया। जैसे, उसे स्क्रीन पर हथौड़ा दिखाया गया, वह बोला “हथौड़ा,” लेकिन कागज पर उसने आरी बना दी।
यह सब देखकर स्पेरी और गज्जानिगा ने कुछ प्रयोग शुरू किए। उन्होंने जो को एक स्क्रीन पर रंग दिखाए। अगर जो से पूछा जाता, “क्या दिखा?” तो वह कहता, “सिर्फ नीला।” लेकिन जब उसे बाएं हाथ से कुछ बनाने को कहा, तो वह लाल रंग की चीज बना देता। ऐसा क्यों? क्योंकि दिमाग के दो हिस्सों का आपस में कनेक्शन टूट गया था। दिमाग का बायां हिस्सा बोलने का काम करता है, और वह सिर्फ दाहिनी आंख से देखी चीज को बता सकता था। लेकिन दायां हिस्सा, जो बाएं हाथ को नियंत्रित करता है, वह चुप रहता था, पर जो देखता था, उसे बना देता था।
अब सवाल था – क्या जो का दिमाग दो हिस्सों में बंटने के बाद उसकी सोच भी दो हिस्सों में बंट गई? क्या उसके एक शरीर में दो “मैं” रहने लगे? बाहर से जो बिल्कुल सामान्य लगता था। वह बात कर सकता था, हंस सकता था, अपना काम कर सकता था। उसका बुद्धिमत्ता स्तर भी कम नहीं हुआ। लेकिन जब उसे कुछ खास परीक्षण दिए गए, तो सच्चाई सामने आई।
उदाहरण के लिए, उसे एक घन (क्यूब) बनाने को कहा गया। उसका बायां हाथ, जो दाएं दिमाग से नियंत्रित होता है, आसानी से घन बना देता। लेकिन दाहिना हाथ, जो बाएं दिमाग से नियंत्रित होता है, घन को समझ ही नहीं पाता। कभी-कभी तो दोनों हाथ आपस में लड़ने लगते, जैसे दो भाई एक खिलौने के लिए झगड़ रहे हों। एक बार उसे दो चॉकलेट्स में से एक चुनने को कहा गया। दाहिना हाथ एक उठाता, बायां हाथ उसे फेंककर दूसरी ले लेता।
यह देखकर वैज्ञानिक हैरान थे। क्या जो के अंदर दो अलग-अलग इंसान रह रहे थे? एक जो बोल सकता था, और दूसरा जो चुप था, लेकिन अपनी मर्जी से काम करता था?
दिमाग का रहस्य:
यह सारी बातें हमें हमारे दिमाग के बारे में बहुत कुछ सिखाती हैं। हमारा दिमाग दो हिस्सों में बंटा है – बायां और दायां। बायां हिस्सा तर्क, गणित, और बोलने में माहिर है। दायां हिस्सा भावनाओं, कल्पना, और कला में। कॉर्पस कैलोसम इन दोनों को जोड़ता है, ताकि वे साथ मिलकर काम करें। लेकिन जो जैसे लोगों में यह कनेक्शन टूट गया था, तो दोनों हिस्से अपनी-अपनी राह चलने लगे।
फिर भी, जो एक ही इंसान की तरह जिंदगी जीता था। वह कहता था, “मैं वही जो हूं, जो पहले था।” इसका मतलब यह है कि हमारा “मैं” – हमारी चेतना – दिमाग के किसी एक हिस्से में नहीं बसती। वह पूरे दिमाग में फैली हुई है। जैसे कोई नदी, जो अलग-अलग रास्तों से बहती है, पर एक ही नदी रहती है।
हम इंसान इतने खास क्यों?
जानवरों में भी दिमाग होता है। हाथी का दिमाग तो हमसे बड़ा भी है। फिर भी वे हमारे जैसा नहीं सोच पाते। क्यों? क्योंकि हमारा दिमाग खास तरीके से बना है। लाखों साल पहले, जब हम दो पैरों पर चलने लगे, हमारे हाथ आजाद हो गए। हमने औजार बनाए, शिकार किया, एक-दूसरे से बातें कीं। हमारे हाथों ने हमें सिखाया कि कैसे सोचें, कैसे बनाएं। धीरे-धीरे हमारा बायां दिमाग तर्क सीखने लगा, और दायां दिमाग सपने देखने लगा।