समुद्र की गहराइयों में एक ऐसी दुनिया है, जो हमें आश्चर्यचकित करती है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने ‘डार्क ऑक्सीजन’ की खोज की, जो समुद्र तल पर मौजूद पॉलीमेटलिक नोड्यूल्स से पैदा होता है। लेकिन इस खोज के साथ एक डरावनी चेतावनी भी आई है—डीप सी माइनिंग इस अनोखी दुनिया को तबाह कर सकती है। आइए, समझते हैं कि यह खतरा कितना बड़ा है और इसे क्यों रोकना जरूरी है।
डीप सी माइनिंग क्या है?
क्लरियन क्लिपरटन ज़ोन (CCZ), प्रशांत महासागर का एक हिस्सा, खनिजों का खजाना है। यहां मैंगनीज, निकल, और कोबाल्ट जैसे कीमती धातु मौजूद हैं, जिनकी कीमत 16-17 ट्रिलियन डॉलर आंकी गई है। ये धातुएं पॉलीमेटलिक नोड्यूल्स में पाई जाती हैं—छोटे-छोटे पत्थर, जो समुद्र तल पर 90 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। इनकी मात्रा करीब 2100 करोड़ टन है।
इन खनिजों को निकालने के लिए कई कंपनियां, जैसे द मेटल्स कंपनी (TMC), डीप सी माइनिंग की योजना बना रही हैं। लेकिन यह प्रक्रिया समुद्र के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा सकती है।
डार्क ऑक्सीजन और पारिस्थितिकी तंत्र
हाल की खोज से पता चला कि पॉलीमेटलिक नोड्यूल्स समुद्र में डार्क ऑक्सीजन पैदा करते हैं। यह ऑक्सीजन गहरे समुद्र के जीवों के लिए जीवनदायी है। CCZ में 5000-6000 प्रजातियां ऐसी हैं, जो सिर्फ यहीं पाई जाती हैं, और इनमें से 88-92% अभी भी अज्ञात हैं। ये जीव डार्क ऑक्सीजन पर निर्भर हैं।
1980 में इस इलाके में हुई एक छोटी सी माइनिंग ने 70-80% जीवों को नष्ट कर दिया था, और 45 साल बाद भी यह क्षेत्र पूरी तरह ठीक नहीं हुआ। यह बताता है कि डीप सी का पारिस्थितिकी तंत्र कितना नाजुक है। अगर बड़े पैमाने पर माइनिंग शुरू हुई, तो पूरा इकोसिस्टम खत्म हो सकता है।
द मेटल्स कम्पनी का हस्तक्षेप और आपसी अनबन
द मेटल्स कंपनी ने शुरू में इस क्षेत्र की रिसर्च को फंड किया था, लेकिन जब डार्क ऑक्सीजन की खोज सामने आई, तो उन्होंने इसे गलत और भ्रामक बताकर दबाने की कोशिश की। उन्होंने नेचर जियोसाइंस जर्नल को भी दोषी ठहराया, जिसमें यह शोध छपा था। यह साफ दिखाता है कि इन कंपनियों के लिए मुनाफा समुद्र के संरक्षण से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
हालांकि, वैज्ञानिकों एंड्र्यू स्वीटमैन और डॉ. फ्रांस गैगर ने हार नहीं मानी। उन्होंने लैब में साबित किया कि ये नोड्यूल्स इलेक्ट्रोलाइसिस के जरिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं। लेकिन कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने इस शोध की मेथोडोलॉजी पर सवाल उठाए, जैसे कि हाइड्रोजन गैस को मापने की कमी। फिर भी, ज्यादातर समुद्री वैज्ञानिक इस खोज का समर्थन करते हैं और माइनिंग पर रोक की मांग कर रहे हैं।
वैश्विक कदम और हमारी जिम्मेदारी
अच्छी खबर यह है कि 33 देश और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने डीप सी माइनिंग पर अस्थायी रोक का समर्थन किया है। लेकिन यह काफी नहीं है। हमें यह समझना होगा कि समुद्र पृथ्वी के फेफड़े हैं। अगर हम इन्हें नष्ट करेंगे, तो हमारा अपना भविष्य भी खतरे में पड़ जाएगा।
डीप सी माइनिंग का लालच हमें एक ऐसी दुनिया को नष्ट करने की ओर ले जा रहा है, जिसके बारे में हम अभी पूरी तरह जानते भी नहीं। डार्क ऑक्सीजन की खोज हमें यह सिखाती है कि प्रकृति के हर हिस्से की अपनी अहमियत है। हमें अपने ग्रह को बचाने के लिए अभी कदम उठाने होंगे। क्या आप डीप सी माइनिंग को रोकने के पक्ष में हैं? अपनी राय साझा करें और इस मुद्दे को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं।