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इमारतें जो सांस लेती हैं: साइनोबैक्टीरिया से बनी CO₂-शोषक सामग्री


क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी इमारतें न सिर्फ हमें आश्रय दें, बल्कि पर्यावरण को भी बचाएं? स्विस वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी सामग्री विकसित की है जो न केवल मजबूत और टिकाऊ है, बल्कि यह हवा से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को सोखकर जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी मदद करती है। यह कोई साधारण सामग्री नहीं, बल्कि एक “जीवंत” चमत्कार है, जो नीले-हरे शैवाल (साइनोबैक्टीरिया) से बना है। आइए, इस अनोखी खोज की कहानी को और करीब से जानें।

हाइड्रोजेल कैसे काम करता है ?

यह सामग्री एक हाइड्रोजेल है, जो पानी से भरी एक जेल जैसी संरचना है। इसमें नीले-हरे शैवाल रहते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के जरिए CO2 को ऑक्सीजन और शर्करा में बदलते हैं। वैज्ञानिकों ने इस हाइड्रोजेल को 3D-प्रिंट करने योग्य बनाया है, जिसमें छोटे-छोटे छिद्र हैं। ये छिद्र प्रकाश, पानी और CO2 को शैवाल तक पहुंचाते हैं, ताकि वे जीवित रहें और अपना जादू दिखा सकें।

यह सामग्री दो तरह से CO2 को सोखती है:

  1. बायोमास के रूप में: शैवाल CO2 को अपनी वृद्धि के लिए उपयोग करते हैं, जिससे वे इसे अपने शरीर में संग्रहित करते हैं।

  2. कार्बोनेट खनिज के रूप में: CO2 को ठोस खनिजों, जैसे चूना पत्थर, में बदला जाता है, जो सामग्री को और मजबूत बनाता है।

यह नन्हा शैवाल एक सुपरहीरो की तरह काम करता है, जो हवा को साफ करता है और साथ ही इमारतों को टिकाऊ बनाता है।

वैज्ञानिक रिसर्च :

वैज्ञानिकों ने इस सामग्री का 400 दिनों तक परीक्षण किया, और परिणाम चौंकाने वाले थे। इस दौरान यह सामग्री लगातार CO2 सोखती रही और प्रति ग्राम सामग्री में 26 मिलीग्राम CO2 को ठोस रूप में संग्रहित किया। पहले 30 दिनों में शैवाल तेजी से बढ़े, और इसके बाद उनकी वृद्धि धीमी हो गई। लेकिन CO2 का अवशोषण रुका नहीं, क्योंकि खनिज बनने की प्रक्रिया चलती रही।

सपना है कि इस सामग्री को इमारतों की दीवारों पर कोटिंग के रूप में इस्तेमाल किया जाए। कल्पना करें, एक ऐसी इमारत जो न सिर्फ खड़ी हो, बल्कि हर दिन हवा को साफ करे और कार्बन उत्सर्जन को कम करे। यह एक जीवित, सांस लेने वाली संरचना होगी, जो प्रकृति और मानव निर्मित दुनिया के बीच एक सेतु बनाएगी।

इटली के वेनिस में एक वास्तुकला प्रदर्शनी में, ETH ज्यूरिख के शोधकर्ताओं ने इस सामग्री को पेड़ के तनों जैसे आकार में प्रदर्शित किया। यह नजारा देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर गया। अनुमान है कि यह सामग्री हर साल लगभग 18 किलोग्राम CO2 सोख सकती है, जो एक 20 साल पुराने पाइन ट्री के बराबर है। यानी, यह सामग्री न सिर्फ इमारतें बनाएगी, बल्कि जंगलों की तरह पर्यावरण की रक्षा भी करेगी।

वैज्ञानिक इस सामग्री को और बेहतर बनाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। वे साइनोबैक्टीरिया को जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए और अधिक कुशल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि यह और तेजी से CO2 सोख सके। साथ ही, वे ऐसी पोषक तत्व वितरण प्रणाली पर काम कर रहे हैं, जो इस सामग्री को लंबे समय तक जीवित और प्रभावी रखे।

कल्पना करें, एक ऐसी दुनिया जहां हर इमारत, हर दीवार, हर छत एक छोटा सा जंगल हो। जहां शहर न सिर्फ रहने की जगह हों, बल्कि पर्यावरण के सच्चे साथी बन जाएं। यह सामग्री उस सपने को हकीकत में बदलने की पहली सीढ़ी है।

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