“कभी-कभी सही इलाज सिर्फ एक सही सवाल से शुरू होता है।”
– अर्जुन गुप्ता, संस्थापक, Genetico Research & Diagnostics
भारत में लाखों लोग हर साल उन बीमारियों से जूझते हैं, जिनके नाम तक डॉक्टरों ने शायद कभी नहीं सुने। इन दुर्लभ और आनुवंशिक बीमारियों का पता अक्सर तब चलता है जब बहुत देर हो चुकी होती है। न सही जानकारी, न सटीक जांच, और न ही देश की अपनी जनसंख्या के अनुसार तैयार किया गया जीनोमिक डेटा।
लेकिन यह कहानी बदल रही है — और इसके पीछे हैं कुछ जिद्दी लोग, जो मानते हैं कि हर जीवन मायने रखता है।
समय सबसे कीमती है
अर्जुन गुप्ता बताते हैं कि इन बीमारियों की पहचान में सबसे अहम है — समय पर रेफरल।
कई बार बच्चों में दुर्लभ बीमारियाँ होती हैं, और समय रहते सही विशेषज्ञ तक पहुँचना उनकी ज़िंदगी बचा सकता है। लेकिन भारत में यह प्रक्रिया बेहद धीमी है — एक मरीज़ को औसतन तीन से पाँच डॉक्टरों के पास भेजा जाता है, और फिर भी वो मेडिकल जेनेटिसिस्ट (genetics विशेषज्ञ) तक नहीं पहुँच पाते। दिक्कत सिर्फ डॉक्टर की कमी नहीं, बल्कि सही सूचना तंत्र की कमी भी है।
आज भारत में सिर्फ 200 के आसपास मेडिकल जेनेटिसिस्ट हैं। हर साल मुश्किल से 10-15 नए विशेषज्ञ तैयार होते हैं। ज़ाहिर है, यह संख्या देश की ज़रूरत से बेहद कम है।
इस वजह से कई बार ऐसे लोग जेनेटिक टेस्ट की सलाह दे देते हैं, जिनकी ट्रेनिंग ही इसमें नहीं होती। नतीजा?
गलत टेस्ट
भ्रमित रिपोर्ट्स
और मरीज़ के लिए अनिश्चित भविष्य
सही प्रक्रिया यह है कि मरीज की पारिवारिक चिकित्सा इतिहास ली जाए, एक pedigree chart (परिवारिक वृक्ष) बनाया जाए और लक्षित सवाल पूछे जाएँ। लेकिन यह काम आज भी अधिकतर कागज़ों पर होता है।
जेनेटिको रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक की स्थापना :
अर्जुन ने 2018 में अपनी नौकरी छोड़ दी और एक मिशन पर निकल पड़े — एक ऐसा AI-सक्षम सॉफ्टवेयर तैयार करना जो दुर्लभ बीमारियों के इलाज और शोध में डॉक्टरों की मदद कर सके।
आज यह तकनीक AIIMS दिल्ली जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में उपयोग हो रही है। यह सॉफ्टवेयर:
परिवारिक इतिहास डिजिटाइज़ करता है, लक्षणों के आधार पर संभावित बीमारियों की सूची बनाता है (differential diagnosis) और जांच की दिशा तय करता है।
डॉक्टरों की सीमित जानकारी को यह तकनीक नई शोध और ग्लोबल डेटा से जोड़ती है।
एक और बड़ी बाधा है — DNA संदर्भ डेटाबेस (reference genome)।
आज भारत में जब जेनेटिक परीक्षण होता है, तो तुलना के लिए जो डेटा उपयोग होता है, वह Caucasian (यूरोपीय) जनसंख्या का होता है।
जबकि भारत में 5,000 से ज़्यादा जातीय उपसमूह हैं, और उनकी जेनेटिक संरचना अलग है।
इसका मतलब है कि बहुत से भारतीय मरीज़ों की रिपोर्ट अस्पष्ट निकलती है, क्योंकि डेटा में ही कमी है।
Genetico टीम का लक्ष्य है कि: देशभर के अस्पतालों में डेटा को डिजिटाइज़ किया जाए, AI के ज़रिए सही सवाल और जांच की दिशा तय की जाए, और एक भारतीय जीनोमिक डेटाबेस तैयार किया जाए।
ICMR (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) ने दुर्लभ बीमारियों का रजिस्टर बनाने की शुरुआत की है। लेकिन जब OPD के बाद डॉक्टर को 4-6 पेज का फॉर्म भरना पड़े, तो ये प्रयास व्यवहारिक नहीं बन पाता।
Genetico इस प्रक्रिया को डिजिटल और आसान बना रही है — ताकि एकत्र किया गया डेटा सटीक, भरोसेमंद और उपयोगी हो।
जब डेटा होगा, दवा भी बनेगी
फार्मा कंपनियाँ तब तक किसी बीमारी पर दवा बनाने में रुचि नहीं लेतीं, जब तक यह स्पष्ट न हो कि उसका बाज़ार है। यदि हमें ये मालूम हो जाए कि भारत में किस क्षेत्र में, किस समुदाय में कौन-सी दुर्लभ बीमारी कितनी फैली है — तो दवाओं पर निवेश बढ़ेगा, और इलाज किफायती हो सकेगा।
उदाहरण के तौर पर, गर्भावस्था के दौरान कई क्रोमोसोम संबंधी विकार आज नॉन-इनवेसिव तरीके से पकड़े जा सकते हैं — बशर्ते हमारे पास डेटा हो।
अर्जुन कहते हैं:
“मेरा सपना है कि हम भारतीय आबादी के लिए, भारत में, भारतीय तकनीकों से समाधान निकालें।
और इलाज को ऐसा सस्ता बनाएं कि कोई परिवार सिर्फ पैसे की कमी की वजह से अपनों को न खोए।”