न्यूक्लियर रिएक्टरों के भीतर, जहाँ तापमान बहुत ऊँचा होता है और विकिरण की तीव्रता इंसानी निगरानी को असंभव बना देती है, अब एक डिजिटल चौकीदार निगरानी करेगा। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोई अर्बाना-शैंपेन के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रणाली विकसित की है जो पारंपरिक तरीकों की तुलना में 1400 गुना तेज़ी से उपकरणों की संभावित विफलता की भविष्यवाणी कर सकती है। यह तकनीक न्यूक्लियर प्लांट की सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।
कृत्रिम सेंसर: जहाँ इंसान नहीं पहुँच सकता वहाँ AI पहुँचेगा
इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य उन स्थानों पर निगरानी करना है जहाँ पारंपरिक उपकरणों का उपयोग करना मुश्किल है। शोध में AI को एक “वर्चुअल सेंसर” के रूप में प्रशिक्षित किया गया है, जो बेहद खतरनाक वातावरण में भी थर्मल और हाइड्रोलिक स्थितियों की रीयल-टाइम निगरानी कर सकता है।
शोधकर्ता प्रोफेसर सय्यद बहाउद्दीन आलम के अनुसार, “हमारी तकनीक ऐसे क्षेत्रों की निगरानी में मदद करती है जहाँ तापमान और विकिरण का स्तर बहुत ऊँचा होता है और जहाँ किसी भी फिजिकल सेंसर को लगाना असंभव है। अब AI की मदद से रिएक्टर की गतिविधियों का एक वर्चुअल नक्शा हमारे सामने होता है।”
DeepONet: तेज़ और भरोसेमंद AI मॉडल
इस परियोजना में AI मॉडल का नाम Deep Operator Neural Networks (DeepONet) है। यह मॉडल न्यूक्लियर रिएक्टर के “हॉट लेग” — यानी वह हिस्सा जहाँ से सुपरहीटेड पानी बहता है — की निगरानी करता है। DeepONet इतनी तेज़ी से कार्य करता है कि यह रिएक्टर के पूरे सिस्टम की स्थिति का लगभग तुरंत अनुमान लगा सकता है।
सुपरकंप्यूटर की ताकत के बिना नामुमकिन था यह काम
इस AI मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए NCSA के डेल्टा सुपरकंप्यूटर और NVIDIA A100 GPU का उपयोग किया गया। इस अत्याधुनिक संसाधन ने DeepONet को उस गति और सटीकता के साथ प्रशिक्षित करने में मदद की, जो वास्तविक दुनिया में इसके उपयोग के लिए आवश्यक थी।
प्रोफेसर आलम कहते हैं, “यह सब संभव हो पाया ‘Illinois Computes’ कार्यक्रम की सहायता से, जिसने हमें उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग संसाधनों का उपयोग करने का अवसर दिया।”
AI और न्यूक्लियर इंजीनियरिंग का मिलन:
इस परियोजना में AI विशेषज्ञों और न्यूक्लियर इंजीनियरों का अभूतपूर्व सहयोग देखने को मिला। NCSA के शोधकर्ता डॉ. दियाब अबुएद्दा ने कहा, “जब उच्चस्तरीय AI तकनीक, सुपरकंप्यूटिंग, और विशेषज्ञता एक साथ आती हैं, तब असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।”
न्यूक्लियर ऊर्जा को शून्य-कार्बन विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन सुरक्षा और रख-रखाव हमेशा चिंता का विषय रहे हैं। ऐसे में यह वर्चुअल सेंसर तकनीक रिएक्टरों की सुरक्षा को एक नई दिशा दे सकती है। शोधकर्ता अब इस तकनीक को अन्य ऊर्जा प्रणालियों में लागू करने की संभावनाओं पर भी काम कर रहे हैं।