हमारा मस्तिष्क शरीर का सबसे जटिल अंग है, लेकिन मस्तिष्क रोगों का इलाज अक्सर बेहद सरल, और कभी-कभी कड़े उपायों पर आधारित रहा है। पहले मस्तिष्क के एक हिस्से को नुकसान पहुंचाकर बीमारी के लक्षणों को “संतुलित” करने की कोशिश की जाती थी। लेकिन अब समय बदल रहा है।
डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS): एक गेमचेंजर
1987 में फ्रांसीसी न्यूरोसर्जन अलिम-लुईस बेनाबिड ने एक अद्भुत खोज की। जब वह मस्तिष्क के एक हिस्से को नष्ट करने से पहले उस स्थान की पहचान करने के लिए विद्युत उत्तेजना का उपयोग कर रहे थे, तो उन्होंने पाया कि यह उत्तेजना ही रोग के लक्षणों को कम कर रही थी, बिना किसी नुकसान के।
यहीं से जन्म हुआ Deep Brain Stimulation (DBS) का – एक ऐसी तकनीक जिसमें मस्तिष्क में विशेष स्थानों पर इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं, जो एक पेसमेकर की तरह विद्युत संकेत भेजते हैं और लक्षणों को नियंत्रित करते हैं।
अब इलाज खुद से होगा तय: Adaptive DBS की शुरुआत
जहां पहले DBS के सेटिंग्स तय कर दिए जाते थे और उन्हें केवल डॉक्टर ही बदल सकते थे, वहीं अब एक नई तकनीक “Adaptive Deep Brain Stimulation” आ गई है जिसे US और यूरोप में मंजूरी मिल चुकी है।
यह तकनीक कैसे काम करती है?
बिलकुल एक थर्मोस्टेट की तरह –
जैसे जब तापमान बढ़ता है तो एसी चालू होता है, वैसे ही जब मस्तिष्क में एक खास प्रकार की हानिकारक तरंगें (brain waves) बढ़ती हैं, तो स्टिमुलेटर अपने आप चालू हो जाता है और लक्षणों को नियंत्रित करता है।
जब मरीज की हालत सुधरती है और ये तरंगें घटती हैं, तो स्टिमुलेशन अपने आप बंद हो जाता है।
लगभग 20 साल पहले, University College London के वैज्ञानिकों ने पाया कि जब पार्किंसन रोगी दवाएं लेना बंद करते हैं और उनके लक्षण बिगड़ते हैं, तब मस्तिष्क में एक खास प्रकार की तरंगें उभरती हैं।
इन तरंगों के आधार पर, वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सर्किट डिजाइन किया जो यह तय करता है कि स्टिमुलेशन कब और कितना दिया जाए – और अब यह तकनीक एक माचिस के डिब्बे से भी छोटे डिवाइस में उपलब्ध है जिसे मरीज की छाती में इंप्लांट किया जा सकता है।
चुनौतियाँ और संभावनाएं
जहां Adaptive DBS एक नई उम्मीद लेकर आया है, वहीं इसके साथ कुछ नई चुनौतियां भी हैं:
अब डॉक्टरों को अधिक जटिल सेटिंग्स को समझना और नियंत्रित करना होगा।
मरीज की दवाओं और दिनचर्या के अनुसार स्टिमुलेशन का असर अलग-अलग हो सकता है।
परिणामों का आकलन करने के लिए दिनों तक परीक्षण जरूरी होता है।
हालांकि, ये डिवाइस अब मस्तिष्क की तरंगों को रिकॉर्ड कर सकते हैं, जिससे डॉक्टर यह जान सकते हैं कि इलाज कितना प्रभावी रहा।
सिर्फ पार्किंसन ही नहीं: और बीमारियों में भी आशा की किरण
इस तकनीक के ज़रिए अब वैज्ञानिक अन्य मानसिक और न्यूरोलॉजिकल रोगों जैसे:
डिप्रेशन
OCD (Obsessive Compulsive Disorder)
माइग्रेन और अन्य गंभीर सिरदर्द
का भी इलाज करने में सफलता पा रहे हैं।
साथ ही, AI के सहारे मस्तिष्क की जटिल तरंगों को समझने और नई बीमारियों की पहचान करने की दिशा में भी प्रयास हो रहे हैं।
“सही स्थान पर, सही समय पर और सही मात्रा में स्टिमुलेशन” – यही अब मस्तिष्क चिकित्सा का अगला कदम है।
अब जब बुनियादी तकनीक तैयार हो चुकी है, तो अगली पीढ़ी के ब्रेन-पेसमेकर हमें ऐसे इलाज देंगे जो मरीज की जरूरतों के अनुसार अपने आप काम करेंगे।