गर्म और नम जंगलों से लेकर कांटेदार झाड़ियों तक, दक्षिणी मेक्सिको से लेकर उत्तरी अर्जेंटीना के जंगलों में एक छाया सी सरकती है। न ज्यादा बड़ी, न बहुत छोटी, और न ही दिखने में आम बिल्लियों जैसी। इस रहस्यमयी प्राणी का नाम है—जगुआरुंडी।
जगुआरुंडी का नाम जितना अनसुना है, उसकी मौजूदगी उतनी ही रहस्यमयी। यह एक ऐसी जंगली बिल्ली है जिसे देखना मुश्किल है, और समझना उससे भी ज्यादा। देखने में यह किसी ऊदबिलाव जैसी लगती है—लंबा शरीर, छोटी टाँगें, पतली और लंबी पूँछ, और सिर सपाट। पहली नजर में लगेगा जैसे किसी बिल्ली और नेवले का मेल हो गया हो। शायद यही वजह है कि इसे कुछ जगहों पर “ओटर कैट” भी कहा जाता है।
इसके शरीर की बनावट और चाल-ढाल इसे बाकी बिल्लियों से अलग बनाती है। जहां ज्यादातर बिल्लियाँ पानी से दूर रहती हैं, वहीं जगुआरुंडी तालाबों और नदियों में सहजता से उतर जाती है, तैरती है, और मछलियाँ पकड़ती है। इसकी इस स्वाभाविक तैराकी क्षमता ने वैज्ञानिकों को भी हैरान किया है, क्योंकि यह गुण अधिकतर नेवले या ऊदबिलाव जैसे जीवों में देखा जाता है, न कि बिल्लियों में।
इतनी दिलचस्प विशेषताओं के बावजूद, यह प्रजाति आज भी वैज्ञानिक शोध और आम चर्चा से कोसों दूर है। इसका एक बड़ा कारण है इसका बहुत सामान्य दिखना—ना किसी तरह के धब्बे, न धारियाँ, न ही कोई खास रंग। नतीजा यह होता है कि एक जगुआरुंडी को दूसरे से पहचानना बेहद कठिन हो जाता है। ऊपर से इसकी आदतें—छिप कर रहना, कम दिखना, इंसानों से दूर रहना—इसे अध्ययन करना और भी मुश्किल बना देती हैं।
शायद इसी वजह से संरक्षण से जुड़े संस्थान भी इसे प्राथमिकता नहीं देते। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने इसे ‘Least Concern’ श्रेणी में रखा है, यानी इसे फिलहाल संकटग्रस्त नहीं माना जाता। पर शोधकर्ताओं का कहना है कि यह स्थिति भ्रामक हो सकती है। जंगलों की कटाई, खेती के लिए जमीनों का विस्तार, और ग्रामीण इलाकों में मुर्गियों पर इसके हमलों के कारण, कुछ जगहों पर इसे मारा भी जाता है।
रिसर्च के लिए पैसा जुटाना और भी मुश्किल है। जब कई प्रसिद्ध जानवर संकट में हैं, तो जगुआरुंडी जैसे अनसुने जीवों के लिए फंडिंग मिलना लगभग नामुमकिन हो जाता है। एक शोधकर्ता ने निराशा भरे लहजे में कहा था, “आप किसी को कभी मना नहीं सकते कि वो जगुआरुंडी पर रिसर्च के लिए पैसे दे।”
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसका अस्तित्व सुरक्षित है। जंगल सिकुड़ रहे हैं, इंसानी बस्तियाँ फैल रही हैं, और प्राकृतिक आवास खंडित हो रहे हैं। अगर आज हम इसका अध्ययन नहीं करते, तो हो सकता है कि कल हम इसे हमेशा के लिए खो बैठें—बिना ठीक से जाने कि यह था क्या।
जगुआरुंडी हमें याद दिलाता है कि हर जीव जो ज़्यादा सुर्खियाँ नहीं बटोरता, जरूरी नहीं कि वो कम महत्वपूर्ण हो। उसकी चुप्पी, उसका छिपा रहना, उसका अकेला तैरना—ये सब एक ऐसी दुनिया की कहानी है जो हमारे आँखों से तो दूर है, पर हमारे पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी है।
शायद अब वक्त है कि हम उस चुप परछाईं को भी आवाज़ दें, जो हमारी धरती पर एक जरूरी संतुलन बनाकर चल रही है—बिना शोर, बिना नाम, बस अपने होने की शर्त पर।