क्या आप सोच सकते हैं कि अगर कोई इंसान अपने दिमाग को कंप्यूटर में अपलोड कर दे, तो क्या होगा?
यह विचार आजकल “माइंड अपलोडिंग (Mind Uploading)” के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब है – अपने दिमाग की एक कॉपी बनाना और उसे कंप्यूटर में डाल देना, ताकि इंसान वहां डिजिटल रूप से जी सके – शायद हमेशा के लिए!
कैसा होगा कंप्यूटर में जीना?
जब आपका दिमाग कंप्यूटर में होगा, तब भी आप खुद को पहचानेंगे, आपकी यादें होंगी, और आप सोच सकेंगे। लेकिन आपके पास शरीर नहीं होगा।
आप कंप्यूटर की एक काल्पनिक दुनिया (virtual world) में रहेंगे। वहां आप खाना खा सकते हैं, गाड़ी चला सकते हैं, या खेल सकते हैं – जैसे असली दुनिया में करते हैं। और तो और, आप दीवार के आर-पार जा सकते हैं, उड़ सकते हैं, या अन्य ग्रहों की यात्रा भी कर सकते हैं। बस, जितना साइंस बना सके – उतनी ही आपकी दुनिया होगी।
क्या यह सच हो सकता है?
वैज्ञानिक मानते हैं कि यह सिद्धांत रूप में संभव है। लेकिन अभी हम उस स्तर तक नहीं पहुँचे हैं।
वैसे भी, पहले चाँद पर जाना, मानव जीन की जानकारी निकालना और चेचक जैसी बीमारियों को मिटाना भी नामुमकिन लगता था – लेकिन विज्ञान ने उन्हें मुमकिन कर दिखाया।
कंप्यूटर में ज़िंदा रहना इतना आसान नहीं
हमारा दिमाग बहुत ही जटिल (complex) है – शायद पूरे ब्रह्मांड की सबसे जटिल चीज़। अगर हम इसे कंप्यूटर में डालना चाहें, तो हमें इसकी हर चीज़ को बहुत गहराई से समझना होगा।
दिमाग सिर्फ सोचने के लिए नहीं है – वो देखता है, सुनता है, सूंघता है, महसूस करता है, और बॉडी को कंट्रोल भी करता है। अगर इन सभी चीज़ों की बिलकुल सटीक नकल (simulation) नहीं बनी, तो इंसान का मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है।
सबसे पहली ज़रूरत: दिमाग का नक्शा
इस प्रक्रिया की पहली ज़रूरत है – पूरे दिमाग का 3D नक्शा बनाना। इसमें हमें 86 अरब न्यूरॉन (brain cells) और उनकी ट्रिलियन कनेक्शन को स्कैन करना होगा।
अब तक वैज्ञानिक सिर्फ मक्खी का दिमाग और चूहे के छोटे हिस्से का नक्शा बना पाए हैं। पूरे इंसानी दिमाग को समझने और स्कैन करने में दशकों लग सकते हैं।
सिर्फ स्कैन करना काफी नहीं
हर न्यूरॉन समय के साथ अपने आप को बदलता है। इसलिए सिर्फ स्कैन करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि दिमाग कैसे काम करता है – यह भी समझना होगा। जब तक यह समझ नहीं आती, तब तक दिमाग को कंप्यूटर में डालना मुमकिन नहीं।
कुछ वैज्ञानिक सोचते हैं कि अगर हम हर असली न्यूरॉन की जगह कृत्रिम न्यूरॉन (Artificial Neuron) डालें, तो यह काम आसान हो सकता है। लेकिन अभी वैज्ञानिक एक भी न्यूरॉन की पूरी नकल नहीं बना पाए हैं।
तकनीक तेजी से आगे बढ़ रही है। कंप्यूटर, AI (Artificial Intelligence), और साइंस हर साल नए रिकॉर्ड बना रहे हैं। कई अमीर लोग भी इस आइडिया में पैसा निवेश कर रहे हैं – क्योंकि वे हमेशा जीना चाहते हैं।
कुछ भविष्यवक्ता कहते हैं कि यह सब 2045 तक संभव हो जाएगा। कुछ कहते हैं कि इस सदी के अंत तक।
लेकिन जो वैज्ञानिक ये लेख लिख रहे हैं, उनका मानना है कि इसमें 100 साल से ज़्यादा लग सकते हैं। शायद 200 साल में यह हकीकत बन जाए।
अगर यह 200 साल में हो जाता है, तो हो सकता है कि पहला इंसान जो कंप्यूटर में जीएगा, वह अभी पैदा हो चुका हो! हो सकता है – वह आप हों!
“Mind Uploading” एक ऐसा विचार है, जो आज कल्पना जैसा लगता है – लेकिन एक दिन सच्चाई भी बन सकता है। इसके लिए हमें दिमाग, कंप्यूटर और शरीर को अच्छे से समझना होगा। जब यह मुमकिन होगा, तब इंसान शायद हमेशा के लिए जी सकेगा।