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वैज्ञानिको ने डाला निएंडरथल मानव का डीएनए एक चूहे में,आये चौकाने वाले नतीजे

क्योटो, जापान – एक रोमांचक वैज्ञानिक खोज में, जापानी शोधकर्ताओं ने यह दिखाया है कि निएंडरथल और डेनिसोवन्स जैसे हमारे विलुप्त हो चुके पूर्वजों के डीएनए के अंश आज भी इंसानों की शारीरिक बनावट को प्रभावित कर सकते हैं।

क्या किया गया प्रयोग?

क्योटो प्रीफेक्चरल यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन की एक शोध टीम ने CRISPR-Cas12a नाम की जीन-संपादन तकनीक का इस्तेमाल किया। उन्होंने चूहों के डीएनए में GLI3 नामक जीन का एक प्राचीन संस्करण (R1537C म्यूटेशन) जोड़ा – वही वेरिएंट जो हजारों साल पहले निएंडरथल और डेनिसोवन मानव प्रजातियों में मौजूद था।

क्या बदलाव देखे गए?

जिन चूहों में यह पुरातन जीन डाला गया, उनके कंकाल में उल्लेखनीय बदलाव दिखे:

  • खोपड़ी का आकार बड़ा और चौड़ा हो गया (मैक्रोसेफली)

  • रीढ़ की हड्डी में असामान्य वक्रता आ गई (स्कोलियोसिस जैसी)

  • रीढ़ की हड्डियों की कुल संख्या घट गई

  • पसलियों की बनावट में तोड़-मरोड़ जैसा बदलाव आया – जैसे निएंडरथल की हड्डियों में देखा गया था

इन सभी परिवर्तनों की समानताएं निएंडरथल के जीवाश्मों में पहले ही देखी जा चुकी हैं, जो इस बात का संकेत देती हैं कि यह जीन वास्तव में उनकी शारीरिक रचना को आकार देने में भूमिका निभाता था।

GLI3 जीन कैसे काम करता है?

GLI3 जीन भ्रूण के विकास के दौरान हड्डियों और अंगों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक जटिल जैविक प्रक्रिया, Hedgehog सिग्नलिंग सिस्टम, से जुड़ा होता है।

इस प्राचीन वेरिएंट में, जीन ने अपना मूल कार्य तो बरकरार रखा, लेकिन उसमें छोटे-छोटे बदलाव हुए जिनका असर हड्डियों की संरचना और संख्या पर पड़ा। यानी मामूली आनुवंशिक बदलाव, लेकिन गहरा प्रभाव।

क्या यह जीन आज भी इंसानों में पाया जाता है?

हां। आश्चर्य की बात यह है कि यह R1537C वेरिएंट आज भी कुछ लोगों के जीनोम में मौजूद है:

  • यूरोपीय मूल के लोगों में: 3.7% से 7.7% तक

  • अफ्रीकी मूल के लोगों में: लगभग 0.8%

इसका मतलब है कि हमारे कुछ दूर के पूर्वजों की आनुवंशिक विरासत आज भी हमारी हड्डियों की बनावट और शरीर की संरचना को प्रभावित कर रही है।

यह प्रयोग इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि हम पुराने मानव पूर्वजों के जीन को आधुनिक जीवों में डालकर उनकी भूमिका और प्रभाव को समझ सकते हैं।

यह शोध न केवल निएंडरथल की शारीरिक रचना को समझने में मदद करता है, बल्कि यह भी बताता है कि विकास की प्रक्रिया के दौरान कुछ विशेष जीन किस तरह आज तक हमारे साथ बने हुए हैं।

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