वैज्ञानिकों ने आखिरकार जीन एडिटिंग की शक्ति को मकड़ियों के जाल तक पहुँचा दिया है। पहली बार, शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मकड़ी तैयार की है जो लाल रंग में चमकने वाला (फ्लोरेसेंट) रेशम बुनती है। यह उपलब्धि न केवल जेनेटिक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक बड़ा कदम है, बल्कि जीवविज्ञान और सामग्री विज्ञान के लिए भी नए रास्ते खोलती है।
मकड़ियों पर जीन एडिटिंग क्यों कठिन थी?
CRISPR-Cas9 तकनीक अब तक कृषि, चिकित्सा और पशुपालन में काफी सफल रही है। लेकिन मकड़ियाँ वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती रही हैं क्योंकि:
उनका जीनोम (डीएनए संरचना) काफी जटिल होता है।
वे सामाजिक रूप से असहज होती हैं और अक्सर एक-दूसरे को खा जाती हैं (नरभक्षण)।
उनके प्रजनन और अंडा विकास की प्रक्रिया भी अत्यंत जटिल होती है।
फिर भी, जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ बेयरुथ की टीम ने इस चुनौती को पार कर लिया।
कैसे की गई यह क्रांतिकारी खोज?
वैज्ञानिकों ने सामान्य घरेलू मकड़ी की अभी निषेचित नहीं हुई अंडियों में एक विशेष रूप से तैयार किया गया CRISPR मिश्रण इंजेक्ट किया। इसका परिणाम एक जीन-संपादित मकड़ी के रूप में सामने आया, जो अब:
प्राकृतिक, हल्का, मजबूत और बायोडिग्रेडेबल रेशम बनाती है।
साथ ही यह रेशम लाल रंग में विशेष प्रकाश के नीचे चमकता है।
यह पहली बार है जब मकड़ी के रेशम को, जिसे पहले से ही सबसे मजबूत प्राकृतिक रेशों में गिना जाता है, बायोलुमिनसेंट बना दिया गया है।
नई तकनीकों का इस्तेमाल
शोधकर्ताओं ने एक और तकनीक CRISPR-KO (नॉकआउट) का इस्तेमाल किया। इसके जरिए “so” नामक एक जीन, जो आंखों के विकास में महत्वपूर्ण माना जाता है, को निष्क्रिय किया गया। इसके परिणामस्वरूप, जिन मकड़ियों में यह जीन निष्क्रिय किया गया, वे आंखों के बिना पैदा हुईं। इससे यह सिद्ध हुआ कि यह जीन आंखों के विकास के लिए आवश्यक है।
भविष्य की संभावनाएँ
मुख्य शोधकर्ता डॉ. थॉमस शाइबेल के अनुसार, अब मकड़ी के रेशम को कई नई उपयोगिताओं के लिए डिज़ाइन किया जा सकता है, जैसे कि:
चिकित्सा उपकरण, जैसे टांके और जैव-अनुकूल ऊतक
स्मार्ट फैब्रिक, जिसे पहनने योग्य तकनीक में इस्तेमाल किया जा सकेगा
ऊर्जा-अवशोषित करने वाली सामग्री और संवेदनशील सेंसर
साथ ही, यह शोध यह भी दर्शाता है कि जीन-संपादित मकड़ियाँ अपनी विशेषताओं को अगली पीढ़ी तक भी बिना गुणवत्ता खोए पहुँचा सकती हैं।यह खोज यह दर्शाती है कि अब मकड़ियों को भी सफलतापूर्वक जीन-संपादित किया जा सकता है। इससे प्राप्त रेशम को आने वाले समय में कई तकनीकी और औद्योगिक प्रयोगों में इस्तेमाल किया जा सकेगा। जैसे-जैसे CRISPR तकनीक आगे बढ़ेगी, हम उन जीवों में भी बदलाव कर पाएंगे जो अब तक विज्ञान की पहुँच से बाहर थे।