कैलिफोर्निया की सूनी ऊँचाइयों पर स्थित व्हाइट माउंटेन्स में, एक ऐसा पेड़ खड़ा है जिसने न केवल समय को झेला है, बल्कि इंसानी इतिहास को भी जीता है। यह पेड़ है मथूसेलाह (Methuselah) — एक प्राचीन ब्रिसलकोन पाइन (Bristlecone Pine), जिसकी उम्र 4,800 साल से भी अधिक बताई गई है। यह न केवल धरती पर मौजूद सबसे पुराने जीवित पेड़ों में से एक है, बल्कि एक ही जीवन की अब तक की सबसे लंबी यात्रा का गवाह भी है।
खोज जिसने दुनिया को चौंका दिया
1953 में, डेंड्रोक्रोनोलॉजिस्ट (वृक्षों की उम्र का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक) एडमंड शुलमैन और उनकी टीम ने कैलिफोर्निया के एक निर्जन पर्वतीय क्षेत्र में प्राचीन वृक्षों की खोज शुरू की। उन्होंने एक विशेष उपकरण से मथूसेलाह के तने से लकड़ी का छोटा सा नमूना लिया और जब उसकी वार्षिक वृत्तों (growth rings) की गिनती की, तो उन्हें एक आश्चर्यजनक सच्चाई का पता चला—यह पेड़ लगभग 4,800 साल पुराना था।
इस खोज के बाद 1957 में की गई दोबारा जांच ने भी इसे सही साबित किया और मथूसेलाह को दुनिया का सबसे पुराना जीवित, गैर-क्लोन वृक्ष घोषित किया गया। इस पेड़ ने मिस्र के पिरामिडों से लेकर आधुनिक युग तक सब कुछ देखा है—बिना अपनी जगह बदले।
पहचान जो अब भी एक रहस्य है
इस वृक्ष की दुर्लभता और महत्व को देखते हुए यू.एस. फॉरेस्ट सर्विस ने इसकी सटीक लोकेशन को गोपनीय रखा। “Methuselah Trail” नाम की एक लोकप्रिय ट्रेकिंग पगडंडी इस पेड़ के पास से गुजरती है, लेकिन कोई नहीं जानता कि उनमें से कौन सा वृक्ष वास्तव में मथूसेलाह है।
हालाँकि 2021 में कुछ ऑनलाइन लीक फ़ोटोज़ ने इस रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश की, लेकिन इस प्राचीन वृक्ष की पहचान अब भी एक रहस्य बनी हुई है।
मथूसेलाह को चुनौती देने वाले पेड़
हाल के वर्षों में, दक्षिणी चिली के जंगलों में स्थित ग्रान अबुएलो (Gran Abuelo) नामक एक और पेड़ चर्चा में आया है। यह एक विशाल फ़िट्ज़रोया (Fitzroya cupressoides) वृक्ष है, जिसे जलवायु वैज्ञानिक जोनाथन बैरिचिविच ने लगभग 5,400 साल पुराना बताया है। हालांकि, इसकी उम्र की पुष्टि नहीं हो सकी क्योंकि पेड़ के अंदर का हिस्सा सड़ चुका है, जिससे संपूर्ण कोर सैंपल लेना संभव नहीं था।
मथूसेलाह को एक बार और चुनौती मिली थी—1964 में—जब वैज्ञानिकों ने नेवादा के व्हीलर पीक क्षेत्र में स्थित प्रोमीथियस (Prometheus) नामक ब्रिसलकोन पाइन को रिसर्च के दौरान काट दिया। काटने के बाद जब उसकी उम्र जांची गई, तो वह 4,862 साल पुराना निकला। यह खोज जितनी रोमांचकारी थी, उतनी ही दुखद और चेतावनीपूर्ण भी, क्योंकि एक अमूल्य जीवित धरोहर को वैज्ञानिकों ने अनजाने में खो दिया।
इन वृक्षों की कहानी सिर्फ उम्र की नहीं है, बल्कि संवेदनशीलता और संतुलन की भी है। आज वैज्ञानिक गैर-विनाशकारी तरीकों, जैसे रिंग मॉडलिंग और उपग्रह आधारित इकोलॉजिकल मॉनिटरिंग, का प्रयोग कर रहे हैं ताकि ऐसे प्राचीन वृक्षों की उम्र और संरचना को समझा जा सके—बिना उन्हें नुकसान पहुँचाए।