कभी आपने सोचा है कि शायद हम एक विशाल, एडवांस्ड प्राणी के दिमाग के भीतर रह रहे हों? ये विचार अजीब जरूर है, लेकिन विज्ञान और शोध की दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं। साल 2020 में एस्ट्रोफिजिसिस्ट फ्रैंको वैजा और न्यूरोसर्जन अल्बर्टो फिलेट ने एक ऐसा प्रयोग किया, जिसने इस सवाल को जन्म दिया। वे ब्रेन के सेरेब्रल सैंपल्स पर काम कर रहे थे। माइक्रोस्कोप में ज़ूम करते-करते उन्होंने देखा कि ब्रेन के न्यूरॉन्स और यूनिवर्स के गैलेक्सीज़ में चौंकाने वाली समानताएँ हैं। ब्रेन के छोटे-छोटे डॉट्स और यूनिवर्स की गैलेक्सीज़ के बीच दिखने वाले कनेक्शन एक जैसे लग रहे थे। कैसे समानता मिली? जब वैज्ञानिकों ने ब्रेन और यूनिवर्स को तीन बुनियादी पैमानों पर जाँचा (दिखावट, संरचना, और संरचना के घटक) तो नतीजे चौंकाने वाले थे।
दिखावट:image credit : ZMEScience
40x ज़ूम पर ब्रेन के न्यूरॉन्स का पैटर्न और यूनिवर्स की गैलेक्सियों का पैटर्न काफी हद तक मिलता-जुलता दिखा। संरचना: औसतन, एक न्यूरॉन चार अन्य न्यूरॉन्स से जुड़ा होता है, और यूनिवर्स में एक गैलेक्सी पाँच गैलेक्सियों से। संरचना के घटक: ब्रेन का 30% द्रव्यमान उसके न्यूरॉन्स में होता है, जबकि यूनिवर्स का 30% द्रव्यमान गैलेक्सियों में। बाकी दोनों के 70% हिस्से में निष्क्रिय सामग्री है—ब्रेन में पानी और यूनिवर्स में डार्क एनर्जी। यूनिवर्स सोच सकता है? जैसे हमारे ब्रेन में न्यूरॉन्स की हलचल से विचार पैदा होते हैं, वैसे ही यूनिवर्स में गैलेक्सियों की गुरुत्वाकर्षणीय बातचीत से घटनाएँ जन्म लेती हैं। ये घटनाएँ क्या यूनिवर्स के विचार हो सकते हैं?
अगर ऐसा है, तो यूनिवर्स को एक विशाल, जीवित दिमाग मानने से फिजिक्स की कई समस्याएँ हल हो सकती हैं, जैसे क्वांटम और क्लासिकल फिजिक्स के बीच का कनेक्शन। सच्चाई या भ्रम? हालाँकि, कुछ वैज्ञानिक इसे भ्रम मानते हैं। उनका कहना है कि हम वही देखते हैं, जो हमारा दिमाग देखना चाहता है। यूनिवर्स के पैटर्न महज़ एक इत्तेफाक भी हो सकते हैं। पर सोचने वाली बात ये है कि अगर ये सच है, तो क्या हमारा ब्रह्मांड सोच रहा है? और अगर सोच रहा है, तो वह क्या सोच रहा है?