क्या वॉर्म होल्स असल में मुमकिन हैं? 1930 का दौर था। अल्बर्ट आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी सबकी जुबान पर थी। पर तभी, भौतिकी की एक नई शाखा, क्वांटम मैकेनिक्स, ने जन्म लिया। इसने आइंस्टीन की थ्योरी पर सवाल खड़े कर दिए। खासकर, क्वांटम एंटेंगलमेंट का सिद्धांत! यह कहता है कि दो पार्टिकल्स, चाहे लाखों किलोमीटर दूर हों, एक-दूसरे की गतिविधियों से तुरंत प्रभावित हो सकते हैं। आइंस्टीन ने इसे “स्पूकी एक्शन एट अ डिस्टेंस” कहा और इसे गलत साबित करने के लिए ईपीआर पेपर लिखा। इसमें उन्होंने एक पैराडॉक्स दिखाया, जिससे क्वांटम मैकेनिक्स खुद ही उलझ जाए।
फिर आया वॉर्म होल का आइडिया आइंस्टीन और उनके साथी नाथन रोज़न ने मिलकर “आइंस्टीन-रोज़न ब्रिज” का प्रस्ताव दिया, जिसे आज हम वॉर्म होल कहते हैं। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि एक ब्लैक होल और एक व्हाइट होल को जोड़कर एक शॉर्टकट बनाया जा सकता है, जो प्रकाश से भी तेज गति से सूचना को ट्रांसफर कर सकता है।
पर असल में, यह एक हाइपोथेटिकल आइडिया था।
क्या वॉर्म होल और क्वांटम एंटेंगलमेंट जुड़े हैं?
लियोनार्ड सस्काइंड ने 1980 के दशक में यह पहचाना कि वॉर्म होल्स और क्वांटम एंटेंगलमेंट में समानताएं हैं। उन्होंने कहा, “वॉर्म होल असल में सूचना ट्रांसफर के लिए एक शॉर्टकट हो सकते हैं, जैसे क्वांटम एंटेंगलमेंट में होता है।” इस विचार ने वैज्ञानिकों को प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया।
लैब में सफलतापूर्वक बनाया गया वॉर्म होल!
हाल ही में, गूगल के वैज्ञानिकों ने क्वांटम कंप्यूटर की मदद से पहली बार एक आर्टिफिशियल वॉर्म होल बनाया। उन्होंने क्वांटम टेलिपोर्टेशन का उपयोग करके एक पार्टिकल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रांसफर किया। यह प्रयोग बताता है कि वॉर्म होल्स मुमकिन हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल यह केवल माइक्रोस्कोपिक स्तर पर हुआ है।
क्या यह भविष्य का सफर है? भले ही आज वॉर्म होल केवल एक प्रयोग का हिस्सा हैं, पर यह सोच रोमांचक है कि एक दिन हम इनसे अंतरिक्ष और समय को मोड़ सकेंगे। यह ब्रह्मांडीय शॉर्टकट हमें नई दुनिया तक पहुंचा सकता है।