कल्पना कीजिए, एक अदृश्य बैरियर पृथ्वी के एक छोटे से हिस्से को घेर कर रखा है। इस बैरियर का कोई आकार नहीं है, न तो कोई इसके अंदर जा सकता है और न ही बाहर। और अगर कोई गलती से इसे पार करने की कोशिश करता है, तो उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
अब सोचिए, इस बैरियर के अंदर रहने वाले लोग और बाहरी दुनिया के लोग एक-दूसरे से कितने अलग हो सकते हैं। यह स्थिति तब और भी चौंकाने वाली हो जाती है, जब तकनीकी दृष्टिकोण से दोनों के बीच का फर्क एक पृथ्वी और चंद्रमा के अंतर जैसा हो।
लेकिन क्या ऐसा कोई अदृश्य बैरियर वास्तव में मौजूद है?
जी हां! यह कोई काल्पनिक विचार नहीं है। यह सच है और इसका नाम है ‘वॉलिस लाइन’। यह लाइन दो आइलैंड्स के बीच स्थित है, जो इंडोनेशिया में पाए जाते हैं। इन आइलैंड्स के बीच मात्र 35 किलोमीटर की दूरी है, लेकिन यहां की जैव विविधता में इतना अंतर है कि इसे समझ पाना बेहद दिलचस्प है।
वॉलिस का अद्भुत सफर
यह खोज की शुरुआत एक साधारण इंसान, अल्फ्रेड रसल वॉलिस से हुई थी। वॉलिस का जन्म 1823 में इंग्लैंड के वेल्स में हुआ था। बचपन में ही उनका शिक्षा का रास्ता खत्म हो गया था, लेकिन उन्होंने अपनी जिज्ञासा और पढ़ाई के लिए घर की लाइब्रेरी से किताबें पढ़ना शुरू किया। इसके बाद, उन्होंने प्रकृति और जीव-जंतुओं में गहरी रुचि लेना शुरू किया।
अखिरकार, उन्होंने जीवों की अद्भुत विविधता पर शोध करने का फैसला किया और इस दिशा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। वॉलिस ने 1848 में ब्राजील के लिए यात्रा की, जहां उन्होंने दुर्लभ प्रजातियों का संग्रह किया। दुर्भाग्यवश, उनके सभी संग्रह जलकर राख हो गए, लेकिन यह उनकी यात्रा का अंत नहीं था।
‘वॉलिस लाइन’ का पता
वॉलिस की असल खोज उस समय हुई जब वह इंडोनेशिया के आइलैंड्स की यात्रा पर थे। बाली और लबॉक आइलैंड्स के बीच की 35 किलोमीटर की दूरी में पाया गया अद्भुत जैविक अंतर किसी के भी लिए हैरान करने वाला था। बाली में पाए जाने वाले जानवरों और लबॉक में पाए जाने वाले जानवरों में जमीन आसमान का फर्क था।
वॉलिस ने यह समझा कि इन दोनों आइलैंड्स के बीच एक अदृश्य सीमा है, जिसे उन्होंने “वॉलिस लाइन” नाम दिया। उनकी थ्योरी के अनुसार, यह जैव विविधता समुद्र और बर्फ की आयु के दौरान पृथ्वी पर हुए भौगोलिक बदलावों का परिणाम थी।
जैविक विविधता की समझ
वॉलिस ने यह सिद्धांत दिया कि बाली और लबॉक आइलैंड्स पहले एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, लेकिन आइस एज के बाद इन दोनों के बीच समुद्र भर गया। इस वजह से, इन द्वीपों पर पाए जाने वाले जानवर और पक्षी अलग-अलग प्रजातियों के हो गए।
वॉलिस ने यह भी बताया कि इन दोनों आइलैंड्स के बीच की जैविक सीमा उस समय उत्पन्न हुई जब पानी ने इन्हें अलग किया। उनके अनुसार, बाली में जो जानवर जैसे टाइगर, हाथी और राइनो पाए जाते हैं, वे सभी एशिया में पाए जाते हैं, जबकि लबॉक में पाए जाने वाले जानवर जैसे कंगारू और मॉनेट लिजर्ड, ये ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं।
वॉलिस की खोज को वैज्ञानिक समुदाय ने पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया, और न ही उनकी खोज को उचित श्रेय दिया गया। इसके बावजूद, उन्होंने इस अदृश्य सीमा को समझने के लिए अपना जीवन समर्पित किया।
उनकी यह खोज आज भी एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे छोटी-सी मिसफॉर्च्यून भी बड़ी खोज की ओर ले जाती है। वॉलिस की ‘वॉलिस लाइन’ ने दुनिया को यह समझने का मौका दिया कि कैसे भौगोलिक और जैविक बदलाव जीवों की प्रजातियों को प्रभावित करते हैं।