कल्पना कीजिए, एक ऐसा दौर जहाँ इंसान अपने क्लोन खुद बना सके! जैसे कि भगवान ने अपने एक अंश से इंसानों को रचा, आज के वैज्ञानिक भी इंसानों की हूबहू कॉपी बना रहे हैं। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक कैंसर मरीज़ की जान बचाने के लिए उसका छोटा सा क्लोन बना दिया। इसका मकसद ये देखना था कि कीमोथेरेपी के दौरान मरीज़ की बॉडी किस तरह रिएक्ट करेगी। यह एक असली इंसान की कॉपी है, जो असली मरीज़ के अंगों की नकल करता है। आइए, इस कहानी में आगे जानते हैं कि इंसान ने कैसे एक नए स्तर पर विज्ञान को पहुंचा दिया है।
ह्यूमन क्लोनिंग :
क्लोनिंग तकनीक ने दुनिया को स्तब्ध कर दिया था जब पहली बार 1996 में डॉली नाम की भेड़ का क्लोन बनाया गया। इसके बाद से इंसान को क्लोन करने की कोशिशों ने कई नैतिक और वैज्ञानिक विवादों को जन्म दिया। इस तकनीक को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने “सोमेटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर” नामक प्रक्रिया अपनाई, जिसमें एक माता-पिता से लिए गए टिश्यू के सैल्स का न्यूक्लियस निकालकर उसे दूसरे सैल्स के न्यूक्लियस से बदल दिया जाता है। इससे जो बच्चा जन्म लेता है, वह अपने माता-पिता की एक जुड़वा कॉपी होता है।
इंसानों की सीक्रेट क्लोनिंग
हालांकि ज्यादातर देशों में ह्यूमन क्लोनिंग बैन है, कुछ कंपनियां और वैज्ञानिक सीक्रेटली इंसानों के क्लोन बना रहे हैं। अमेरिका की एक क्लोनिंग कंपनी क्लोनेट की सीईओ ब्रिगेट बॉय सेलियर का दावा है कि उन्होंने कम से कम 20 ह्यूमन क्लोन बनाए हैं, और इनमें से पहली क्लोन बेबी ‘ईव’ का जन्म 26 दिसंबर 2002 को हुआ था। आज, वो शायद हमारे ही बीच एक आम लड़की बनकर रह रही हो!
कई विदेशी सेलेब्रिटीज अपने पालतू जानवरों के आखिरी समय में उनके टिश्यू सैंपल्स सुरक्षित करवा लेते हैं, ताकि भविष्य में उनके मरे हुए पालतू जानवर का क्लोन तैयार किया जा सके। वाय जन पेट्स (अमेरिका), सीनो जीन (चीन), और सोम बायोटेक (साउथ कोरिया) जैसे संस्थान इन सैंपल्स को दो से तीन महीनों में प्रोसेस करके एक नया क्लोन पालतू जानवर उनके घर पहुंचा देते हैं। क्लोनिंग तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी है कि अगर सभी बैन हटा दिए जाएं, तो इंसानों की हूबहू कार्बन कॉपी तैयार करना संभव हो सकता है।
क्लोनिंग तकनीक के आधुनिक चिकित्सा जगत में इस्तेमाल
ह्यूमन क्लोनिंग का एक अनोखा इस्तेमाल कैंसर के इलाज में हुआ है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक कैंसर मरीज़ का मिनी क्लोन तैयार किया। इस क्लोन में मरीज़ के हृदय, बोन, लिवर, और स्किन के टिश्यूज को अलग-अलग कंपार्टमेंट्स में उगाया गया, और फिर इन्हें आर्टिफिशियल ब्लड वेसल्स से जोड़कर उनमें मरीज़ का खून सर्कुलेट किया गया। इसके बाद इस पर एंटी-कैंसर ड्रग डॉक्सरूबिसिन टेस्ट किया गया। नतीजे चौंकाने वाले थे, क्योंकि यह मिनिएचर ऑर्गन सिस्टम एक असली इंसानी शरीर की तरह ही रिएक्ट कर रहा था।
विज्ञान के इस सफर ने हमें भगवान के करीब पहुंचा दिया है। नैतिक दृष्टिकोण से देखें, तो इंसानों की क्लोनिंग आज भी एक विवादित मुद्दा है, लेकिन यह तकनीक इतनी एडवांस हो चुकी है कि इंसान की एक पूरी तरह से असली दिखने वाली कॉपी तैयार करना संभव है। क्या यह तकनीक हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बन जाएगी?