क्या आपने कभी सोचा है कि कोई ऐसा जीव हो सकता है जो लगभग किसी भी परिस्थिति में जीवित रह सके? चाहे वो अंतरिक्ष की कड़ाके की ठंड हो, महासागरों की गहराई, उबलते पानी जैसा तापमान या इंसानों के लिए जानलेवा विकिरण — टार्डीग्रेड या वाटर बियर इन सबमें ज़िंदा रह सकते हैं!
इतिहास और बनावट
1773 में जर्मन जीवविज्ञानी जोहान अगस्त एफ्राइम गोज़े ने इस छोटे से जीव की खोज की थी और इसे “Kleiner Wasserbär” यानी “छोटा जल भालू” नाम दिया। 2024 तक, वैज्ञानिकों ने टार्डीग्रेड की लगभग 1,300 प्रजातियाँ खोजी हैं।
हालाँकि इनका नाम ‘भालू’ जैसा है, पर इनकी लंबाई केवल 0.5 से 1.5 मिमी होती है — यानी एक रेत के कण के बराबर। इनके शरीर में आठ छोटे पैर और पंजे होते हैं, और इनमें फेफड़े नहीं होते; ये अपने पूरे शरीर से गैस और पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करते हैं।
अल्टीमेट सर्वाइवर: टार्डीग्रेड का ट्यून स्टेट
टार्डीग्रेड अपनी “ट्यून अवस्था” (Tun State) में जाकर मुश्किल हालातों में ज़िंदा रह सकते हैं। इस स्थिति में:
ये अपने शरीर का 95% पानी निकाल लेते हैं।
खुद को एक छोटे बॉल में समेट लेते हैं।
एक काँच जैसी सुरक्षात्मक परत बना लेते हैं।
मेटाबोलिज्म केवल 0.01% तक कम हो जाता है।
बिना खाए 30 साल तक ज़िंदा रह सकते हैं।
कुछ दशकों तक, या शायद 100 साल तक, ऐसे ही रह सकते हैं जब तक माहौल फिर से अनुकूल न हो।
इंसानों के लिए क्या मायने रखता है ये?
टार्डीग्रेड्स के 500 मिलियन साल पुराने जीवाश्म पाए गए हैं — यानी इन्होंने पृथ्वी के पाँच बड़े विनाश कालों को झेला है। और यही बात इन्हें इंसानी चिकित्सा और वैज्ञानिक शोध के लिए बेहद उपयोगी बनाती है।
Dsup प्रोटीन: कैंसर उपचार की नई उम्मीद
एक अद्भुत खोज में वैज्ञानिकों ने टार्डीग्रेड्स में एक विशेष प्रोटीन पाया — Dsup (Damage Suppressor) — जो DNA को विकिरण (Radiation) से होने वाले नुकसान से बचाता है।
जब इंसानों को रेडिएशन थेरेपी दी जाती है, तो DNA टूटने लगता है जिससे कोशिकाएँ मर जाती हैं। लेकिन टार्डीग्रेड्स:
इस प्रोटीन की मदद से DNA को टूटने से नहीं रोकते, पर इतना सुरक्षित रखते हैं कि जीवित रह सकें।
फिर ये DNA की तेज़ मरम्मत करते हैं, जो इंसानों के मुकाबले बहुत अधिक प्रभावी है।
2025 का महत्वपूर्ण शोध: इंसानों पर असर
MIT, ब्रिघम एंड विमेन्स हॉस्पिटल और यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के शोधकर्ताओं ने फरवरी 2025 में एक प्रयोग किया। उन्होंने Dsup RNA को चूहों में इंजेक्ट किया और पाया:
DNA में 50% कम टूट-फूट हुई।
ये प्रभाव सिर्फ इंजेक्शन वाले हिस्से तक सीमित रहे।
यानी रेडिएशन थेरेपी अब भी कैंसर कोशिकाओं पर असर करती रही, जबकि स्वस्थ कोशिकाएँ बच गईं।
भविष्य की संभावनाएँ
टार्डीग्रेड्स न सिर्फ विज्ञान के लिए एक रहस्य हैं, बल्कि वो मानव स्वास्थ्य के लिए संभावनाओं का खजाना हैं:
ऑर्गन ट्रांसप्लांट को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मदद।
रेडिएशन थेरेपी को सुरक्षित और कम तकलीफदेह बनाना।
बायो-इंजीनियरिंग में नए प्रयोगों की प्रेरणा।