दुनिया के इतिहास में भोपाल गैस त्रासदी को कभी भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उससे भी भयानक रेडिएशन हादसा एक अकेले इंसान पर कैसे भारी पड़ा? यह कहानी है हिसाशी ओची की, जिसे दुनिया का “मोस्ट रेडियोएक्टिव मैन” कहा जाता है।
भोपाल गैस त्रासदी: मौत का कुहरा
2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) गैस लीक हुई। इस हादसे में 25,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, और लाखों लोग आज भी उस जहरीले प्रभाव से जूझ रहे हैं।
लेकिन जब जापान में न्यूक्लियर रेडिएशन का कहर बरपा, तब विज्ञान और चिकित्सा ने अपने सीमित ज्ञान और तकनीक के सामने घुटने टेक दिए।
हिसाशी ओची और टोकाई मुरा का न्यूक्लियर हादसा
30 सितंबर 1999, जापान की JCO न्यूक्लियर फ्यूल कन्वर्जन कंपनी में तीन कर्मचारी न्यूक्लियर फ्यूल तैयार कर रहे थे। यह फ्यूल न्यूक्लियर रिएक्टर के लिए ऊर्जा का स्रोत होता है। इस प्रक्रिया के दौरान कर्मचारियों ने एक गंभीर गलती कर दी।
वे रेडियोएक्टिव यूरिनल नाइट्रेट सॉल्यूशन को क्रिटिकल मास से अधिक मात्रा में ऐसे वेसल में डाल बैठे, जिससे एक अनियंत्रित चेन रिएक्शन शुरू हो गया।
हादसे की शुरुआत और हिसाशी का दुर्भाग्य
जैसे ही रेडियोएक्टिव रिएक्शन हुआ, वेसल से तेज़ नीली रोशनी निकली और गामा रेडिएशन के अलार्म बज उठे। तीनों कर्मचारी तुरंत वेसल से दूर भागे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
- हिसाशी ओची: 17 सीवर्ट्स रेडिएशन एक्सपोजर
- मासातो शिनोबु: 10 सीवर्ट्स रेडिएशन
- यूटा तानोका: 3 सीवर्ट्स रेडिएशन
क्या होता है सीवर्ट्स?
रेडिएशन मापने की यूनिट सीवर्ट्स है।
- औसत इंसान एक साल में लगभग 6.2 मिलीसीवर्ट्स रेडिएशन झेलता है।
- हिसाशी के शरीर ने 2742 गुना अधिक रेडिएशन कुछ ही सेकंड्स में सोख लिया।
- इतना रेडिएशन हिरोशिमा बम के केंद्र बिंदु के बराबर था।
हिसाशी का दर्दनाक संघर्ष
पहले दिन: लक्षण और स्थिति
हिसाशी को तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। शुरुआत में उसकी हालत सामान्य दिख रही थी। लेकिन 24 घंटे के भीतर ही उसकी सांस फूलने लगी। उसका शरीर अंदर ही अंदर टूटने लगा।
बोन मैरो और क्रोमोसोम्स का टूटना
हिसाशी के बोन मैरो के क्रोमोसोम्स रेडिएशन से बिखर चुके थे। इसका मतलब था कि उसके शरीर में नई कोशिकाएं बनना बंद हो गया था।
- बिना नई कोशिकाओं के, शरीर खुद को रिपेयर नहीं कर सकता।
- डॉक्टरों ने तुरंत स्टेम सेल ट्रांसप्लांट का फैसला किया, लेकिन रेडिएशन के प्रभाव ने इसे भी बेअसर कर दिया।
त्वचा और इम्यून सिस्टम का खत्म होना
रेडिएशन ने हिसाशी की त्वचा को जला दिया था।
- मेडिकल टेप हटाने पर त्वचा के साथ मांस भी निकलने लगा।
- उसकी त्वचा इतनी नाजुक हो गई थी कि वह धीरे-धीरे गलने लगी।
डॉक्टरों की लड़ाई और हिसाशी का अंत
कई हफ्तों तक हिसाशी को जिंदा रखने के लिए उसे लगातार इंट्रावेनस फीडिंग दी गई। लेकिन धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ती गई।
- शरीर में वाइट ब्लड सेल्स लगभग खत्म हो चुके थे।
- हर छोटा संक्रमण भी उसके लिए जानलेवा था।
83 दिन तक मौत से जंग
हिसाशी ने 83 दिनों तक मौत को हराने की कोशिश की। लेकिन आखिरकार, 21 दिसंबर 1999 को उसने दम तोड़ दिया।
हिसाशी की मौत ने न्यूक्लियर सुरक्षा मानकों पर गंभीर सवाल खड़े किए। इस घटना ने यह सिखाया कि मानव जीवन की कीमत पर लापरवाही नहीं हो सकती।