क्या आप जानते हैं कि बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) के पीछे सैकड़ों जीन जिम्मेदार हो सकते हैं? यह मानसिक बीमारी, जिसमें मूड बार-बार तेजी से ऊपर (मैनिक एपिसोड) और नीचे (डिप्रेशन एपिसोड) जाता है, लंबे समय तक इलाज के बावजूद वापस आ सकती है। लेकिन अब, एक नई रिसर्च ने इसके आनुवंशिक (Genetic) कारणों को और बेहतर तरीके से समझने में मदद की है।
सबसे बड़ा जेनेटिक अध्ययन – बाइपोलर डिसऑर्डर के पीछे क्या है?
अभी तक यह तो पता था कि बाइपोलर डिसऑर्डर कई जीन से प्रभावित होता है, लेकिन कौन-कौन से जीन असल में जिम्मेदार हैं, यह सवाल अब तक अधूरा था।
लेकिन अब, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) द्वारा वित्त पोषित अब तक के सबसे बड़े जीनोम अध्ययन (Genome-Wide Study) ने बाइपोलर डिसऑर्डर के जेनेटिक कारणों को बेहतर ढंग से उजागर किया है। इस रिसर्च का उद्देश्य था – बाइपोलर डिसऑर्डर को समझना और इसके लिए अधिक प्रभावी, व्यक्तिगत (Personalized) इलाज के रास्ते खोलना।
कैसे हुआ यह अध्ययन?
🔹 यह रिसर्च Bipolar Disorder Working Group of the Psychiatric Genomics Consortium द्वारा की गई।
🔹 इसमें 79 अलग-अलग समूहों (Clinical, Community, और Self-Report Cohorts) से 158,036 बाइपोलर मरीजों और 2,796,499 स्वस्थ लोगों के जीनोम का अध्ययन किया गया।
🔹 यह अब तक का सबसे विविध आनुवंशिक अध्ययन था, जिसमें यूरोपियन, ईस्ट एशियन, अफ्रीकी-अमेरिकी और लैटिनो वंश के लोग शामिल थे।
रिसर्च में क्या चौंकाने वाली बातें सामने आईं?
🔹 इस स्टडी में पहले से पहचाने गए जीन की संख्या चार गुना बढ़ गई! यानी, पहले जिन जीन को बाइपोलर डिसऑर्डर से जोड़ा जाता था, अब 300 से अधिक नई जेनेटिक लोकेशन और 36 विशिष्ट जीन इस मानसिक बीमारी से जुड़े पाए गए।
🔹 इनमें से कई जीन शिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) और डिप्रेशन (Depression) जैसी अन्य मानसिक बीमारियों से भी जुड़े थे।
🔹 स्टडी ने यह भी बताया कि बाइपोलर डिसऑर्डर के अलग-अलग प्रकारों में आनुवंशिक अंतर हो सकता है – यानी हर मरीज में यह बीमारी अलग तरह से क्यों प्रकट होती है, इसका जवाब हमें जीन में मिल सकता है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है – अगर बाइपोलर डिसऑर्डर के अलग-अलग मरीजों में इसके कारण अलग-अलग हो सकते हैं, तो क्या इलाज भी हर किसी के लिए अलग होना चाहिए?
🔹 वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिसर्च के नतीजे व्यक्तिगत (Personalized) और अधिक प्रभावी इलाज विकसित करने में मदद कर सकते हैं।
🔹 अगर हमें यह पता चल जाए कि किस व्यक्ति में कौन से जीन इस बीमारी को ट्रिगर कर रहे हैं, तो शायद उसके लिए बेहतर दवाएं और ट्रीटमेंट तैयार किए जा सकते हैं।
🔹 सबसे बड़ी चुनौती अब यह समझना है कि यह बीमारी अलग-अलग लोगों में इतनी अलग क्यों होती है? क्या इसमें सिर्फ जेनेटिक्स का हाथ है, या फिर पर्यावरण और लाइफस्टाइल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में एक नया कदम
यह रिसर्च साबित करती है कि बाइपोलर डिसऑर्डर सिर्फ एक “मूड स्विंग” की समस्या नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा जैविक और आनुवंशिक कारण है।
अगर हम इस दिशा में और रिसर्च करें, तो शायद एक दिन हम इस बीमारी का अधिक सटीक और व्यक्तिगत इलाज खोज सकें, जिससे लाखों लोगों को राहत मिल सके।
अब जब विज्ञान बाइपोलर डिसऑर्डर के रहस्यों से पर्दा हटा रहा है, तो भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में और भी बड़े बदलाव आने की उम्मीद है!