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जब पृथ्वी के महासागर नीले नहीं, हरे रंग के थे !!

जब भी हम पृथ्वी की कल्पना करते हैं, तो एक नीले रंग के ग्रह की तस्वीर हमारे सामने आती है – वो सुंदर नीला गोला, जैसा कि वॉयेजर-1 द्वारा ली गई प्रसिद्ध “पेल ब्लू डॉट” तस्वीर में दिखाई देता है। लेकिन एक नई वैज्ञानिक रिसर्च बताती है कि आज से करीब 2.4 अरब साल पहले, पृथ्वी के महासागर नीले नहीं, बल्कि हरे रंग के होते थे।

जब वायुमंडल में ऑक्सीजन नहीं थी

यह कहानी उस दौर की है जिसे आर्कियन युग कहा जाता है। उस समय पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन नहीं थी, और जीवन बहुत प्रारंभिक अवस्था में था। महासागरों की गहराई में मौजूद हाइड्रोथर्मल वेंट्स (समुद्रतल की दरारें जो गर्म, खनिज-युक्त पानी बाहर निकालती हैं) से भारी मात्रा में फेरस आयरन (Ferrous Iron) महासागर में घुल रहा था।

चूंकि ऑक्सीजन नहीं थी, यह आयरन पानी में घुलकर मौजूद रहता और प्रकाश को अलग तरह से प्रभावित करता।

हरे पानी का रहस्य: लौह कण और प्रकाश

जैसे-जैसे सायनोबैक्टीरिया नाम के सूक्ष्म जीव विकसित हुए, उन्होंने प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) से ऑक्सीजन बनाना शुरू किया। यह ऑक्सीजन फेरस आयरन से प्रतिक्रिया करके उसे फेरिक आयरन (Ferric Iron) में बदलने लगी। फेरिक आयरन पानी में नहीं घुलती और ये छोटे-छोटे कणों (जैसे जंग – iron hydroxide) के रूप में तैरने लगे।

इन कणों ने लाल और नीली रोशनी को सोख लिया, लेकिन हरे रंग की रोशनी को पार होने दिया। नतीजा? पृथ्वी के महासागर हरे रंग में चमकने लगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि उस समय हम अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखते, तो वह आज की तरह नीली नहीं, बल्कि एक चमकती हरी दुनिया दिखाई देती।

यह खोज अंतरिक्ष में जीवन खोजने में कैसे मदद कर सकती है?

इस अध्ययन का एक रोमांचक पहलू यह है कि यह हमें दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज में मदद कर सकता है। अगर हम किसी दूर के ग्रह से हरे रंग की चमक देखते हैं, तो संभव है कि वह भी वैसी ही प्रारंभिक स्थिति में हो जैसे कभी पृथ्वी थी — और वहाँ पर सरल जीवन विकसित हो रहा हो।

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